Category: पहला कदम
श्रावक के मूलगुण
1. जब नवजात बच्चे को 40वें/ 45वें दिन जैन बनाने मंदिर ले जाते हैं तब मद्य, मांस, मधु तथा 5 उदंबरों = 8 का त्याग
निर्विचिकित्सा
निर्विचिकित्सा गुण उसी में होता है जो राग/ द्वेष, सुंदरता/ असुंदरता से ऊपर उठ गया हो। शांतिपथ प्रदर्शक
पारिणामिक भाव
तीनों (जीवत्व, भव्यत्व, अभव्यत्व) जीव/ द्रव्य में बने रहते हैं। उस तरह का परिणमन हर समय बना रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/7)
अकाल मरण
अकालमरण देव, नारकी, भोग भूमिज, चरमोत्तम शरीरी को नहीं होता तत्त्वार्थ सूत्र जी जिज्ञासा… आयुबंध होने के बाद भी तो नहीं होता है उसको क्यों
तैजस काय योग ?
तैजस काय योग नहीं होता है जैसे औदारिक/ वैक्रियक/ आहारक/ तीन मिश्र काय योग होते हैं। क्योंकि तैजस शरीर की वर्गणाओं से आत्मा में परिस्पंदन
बारह भावना
लोकांतिक देव बारह भावना भाकर ही बने, आज भी भाते हैं। तीर्थंकर जब बारह भावना भाकर गृहत्याग करते हैं, तब आकर अनुमोदना करते हैं। आचार्य
नय
1. निश्चय नय → कर्म/ संसार/ आस्रव तथा मोक्ष को भी नहीं स्वीकारता। सिर्फ शुद्ध स्वरूप को मानता है। गंतव्य/ लक्ष्य/ मंज़िल पर दृष्टि रखता
उपभोग
सामान्य परिभाषा – बार बार भोगना। आध्यात्मिक परिभाषा – हर इन्द्रिय सम्बन्धित जैसे मोबाइल को बार-बार देखना/ सुनना। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र- 2/53)
सूक्ष्म एकेन्द्रिय
सूक्ष्म एकेन्द्रिय का उदाहरण –> वायुमण्डल में गैसें। मुनि श्री प्रणम्य सागर जी (जिज्ञासा समाधान – 7. 5. 22)
Short Form
हम सब को, हर चीज़ का Short Form बहुत प्रिय है, उसकी Demand बहुत है। पंच परमेष्ठी का Short Form है… “ॐ नमो नम:” आचार्य
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