Category: पहला कदम

पुरुषार्थ

पुरुषार्थ = पुरुष का इच्छापूर्वक कार्य, चेतनात्मक। पुरुषार्थ जड़ में भी होता है, जैसे भाप के निकलने का प्रयास, जड़ात्मक। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

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कषाय / अधर्म

जैसे कषायें अपना प्रभाव योगों के माध्यम से देतीं हैं (लेश्या बनकर), ऐसे ही अधर्म का प्रभाव/ पहचान क्रियाओं के माध्यम से होती है। चिंतन

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प्रतिक्रमण

प्रति = स्वयं, क्रमण = क्रम में लौटना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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ज्ञानेंद्रिय

इंद्रियों का उपयोग ज्ञान की अपेक्षा से, इसलिये इंद्रियों को ज्ञानेंद्रिय कहा है। अन्य मतों में 5 इंद्रियों की जगह 10 इंद्रियाँ मानी हैं। 5

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मोक्ष

मोक्ष शब्द “मच्” धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है – “मुक्ति”। दूसरे शब्दों में कल्पना ही बंधन है, उससे छूटना मोक्ष। शान्तिपथ प्रदर्शक

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नियम की बाध्यता

श्री लाजपतराय जैन थे। एक गुरु ने उनको कुछ नियम लेने को कहा। उनके मना करने पर समाज वालों ने बहुत आलोचना की। परेशान होकर

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रत्नत्रय

अमृतधारा में कपूर, अजवाइन का फूल तथा पिपरमेण्ट बराबर मात्रा में मिलाया जाता है। रत्नत्रय में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यकचारित्र का महत्व भी बराबर होता

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अंत की भावना

अंत समय की गवाही “कलम बद्ध” होती है। उसकी प्रमाणिकता को Challenge नहीं किया जाता है। ऐसे ही अंत समय के परिणाम “कर्म बद्ध” होते

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आयुबंध

अपकर्ष कालों में सबसे ज्यादा जीव एक बार आयुबंध करते हैं। उनसे असंख्यात गुणे कम 2 बार। क्रमश: संख्यात-2 गुणे कम-कम होते, 8 बार आयुबंध

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देशव्रती की मांग

देशव्रती भगवान/ गुरु से शरीर/ परिवार चलाने के लिये मांग सकता है (व्यवस्था चलाने के लिये), पर भोग-विलास के लिये नहीं। मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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