Category: पहला कदम

प्रायश्चित

‘प्रायः’ से सन्यास + ‘चित्त’ से मन (श्री रयणसार जी)। यानी मन में सन्यास भाव होंगे तभी प्रायश्चित्त होगा। कुली (बोझा ढोने वाला) नहीं, यात्री

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सहनन / देवगति

वज्र वृषभनाराच सहनन वाले सर्वार्थसिद्धि तक, वज्रनाराच सहनन + नाराच सहनन 9 ग्रैवेयक तक, अर्द्ध नाराच सहनन वाले 16 स्वर्ग तक, कीलक सहनन वाले 12

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पंचम काल

पंचम काल में ज्यादातर एक आँख वाले ही पैदा होते हैं, छठे काल में अंधे। पहली आँख की रोशनी से सम्यग्दर्शन/ अष्टमूल गुण पालन, दूसरी

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चारित्र

भगवानों के वर्धमान चारित्र होते हैं। पंचमकाल में हीयमान। पर आचार्य श्री विद्यासागर जी के समय में तो वर्धमान दिख रहा है ? आचार्य श्री

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समवसरण व्यवस्था

आचार्य कुंदकुंद के अनुसार आर्यिकाओं को दीक्षा नहीं दी जाती। इसीलिये उन्हें श्राविकाओं के कोठे में बैठाया जाता है। देवियों को अलग-अलग कोठों में इसलिये

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शुद्ध/अशुद्ध द्रव्य

जीव क्रियावान, पुद्गल भी क्रियावान क्योंकि उसमें अणु से स्कंध तथा स्कंध से अणु बनते रहते हैं। इसीलिये दोनों अशुद्ध। बाकी चारों द्रव्य क्रियावान नहीं

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मनोवर्गणाएँ

मनोवर्गणाएँ द्रव्य-मन में उपादान कारण हैं। भाव-मन नोइंद्रियावरण के क्षयोपशम से उत्पन्न ज्ञान की परिणति है, जिससे स्मृति/ विचार क्षमता आती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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परिचय

मेरा/ हम सब का सही परिचय… स्व-चतुष्टय है। जो इस पर विश्वास करते हैं वे सम्यग्दृष्टि होते हैं। हमारी कार्मण वर्गणायें भी अपने-अपने चतुष्टय में

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धर्माधर्मयोः कृत्स्ने

धर्माधर्मयोः कृत्स्ने… धर्म अधर्म एक-एक होते हुए भी पूरे लोकाकाश में पूर्ण रूप से व्याप्त हैं, जैसे तिल में तेल। अन्य द्रव्यों का ऐसा नहीं

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अस्तित्व / सहकारिता

सब द्रव्य साथ-साथ रहकर भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं। एक दूसरे के स्वभाव को छेड़ते नहीं। इसीलिये कहा कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का

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मंगल आशीष

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