Category: पहला कदम
सम्यग्दर्शन / स्त्री पर्याय
सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से पहले यदि स्त्री पर्याय बांध ली हो तो वह संक्रमित होकर पुरुष पर्याय में परिवर्तित हो जाती है। श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
ज्योतिष विमान
तिर्यक लोक (मनुष्य लोक) के ज्योतिष विमान भ्रमण करते रहते हैं। अन्य द्वीप/ समुद्रों के आधे भ्रमण करते हैं, आधे अवस्थित। स्थिरता केवल तारों में
आकाश
अवगाहन तो मुख्य रूप से आकाश में ही होता है। इसलिए आकाश को “विभु” कहा है (सबका आधार/ सर्वसामर्थ्यवान प्रभु)। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ
परनिन्दा
निधत्ति, निकाचित कर्मबंध का एक और कारण है…. लोगों में वो दोष लगाना जो उनमें हैं ही नहीं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अवगाहन
आकाश की अवगाहन शक्ति से संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी अनंत द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में रह रहे हैं। द्रव्य के अंदर अवगाहन/ संकोच-विस्तार स्वभाव भी
मुनि शिवभूति जी
शिवभूति मुनि ज्ञानावरण कर्म के तीव्र उदय से अल्पज्ञानी थे। गुरु ने “मा-रुस मा-तुस” सूत्र का चिंतन करने को कहा। सूत्र का अर्थ था, “द्वेष
आकाश में ऊर्जा
आकाश में, अणु से स्कंध तथा स्कंधों के टूटने से अणु बनने की क्रियाएं लगातार चलती रहती हैं। उससे Space में Energy बनी रहती है।
चार गुण
सम्यग्दर्शन के लिये चार गुण (प्रशम, अनुकम्पा, संवेग, आस्तिक्य*)। पहले तीन गुण तो मिथ्यादृष्टि के भी हो सकते पर आस्तिक्य का संबंध सम्यग्दर्शन से ही
शुद्ध जीवों में क्रिया
शुद्ध जीव 14वें गुणस्थान से सिद्धालय तक की 7 राजू की यात्रा करके हमेशा – हमेशा के लिये क्रिया रहित हो जाते हैं। मुनि श्री
परमाणु में गुण/पर्याय
परमाणु में 4 गुण/ 5 पर्याय (एक रस, एक गंध, एक वर्ण, शीत या उष्ण, स्निग्ध या रुक्ष)। श्री राजवार्तिक – 5/25, पृष्ठ 13-14 (2008)
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