Category: पहला कदम
दर्शन
1. मोक्षमार्ग का प्रदर्शन (दर्शन पाहुण) 2. निर्ग्रंथ मुनि के दर्शन 3. मान्यता/मत 4. निराकार रूप ग्रहण (आकार/प्रकार को ग्रहण न करके) गुरुवर मुनि श्री
अज्ञान / प्रमाद
अज्ञान उतना ख़तरनाक नहीं, जितना प्रमाद। आचार्य श्री विद्यासागर जी
ज्ञानी / अज्ञानी
अज्ञानी – विपत्तियों में पापोदय का रोना। ज्ञानी – विपत्तियों को पाप कर्मों की निर्जरा मानकर संतुष्ट। मुनि श्री सुधासागर जी
बारह भावना
Biochemic में बारह अवयव होते हैं। शरीर में एक भी कम तो बीमार, हर मर्ज़ का इलाज़ भी इन बारह अवयवों से ही। बारह भावनाओं
कल्पवृक्ष
कल्पवृक्ष एकेंद्रिय होता है, तो वह इच्छायें कैसे जान लेता है ? उसका स्वभाव होता है जैसे sensor का, वह तो अजीव ही होता है।
सम्बंध
आत्मा का कर्मों के साथ घनिष्ठ सम्बंध होता है इसीलिये दोनों सूक्ष्म साथ साथ जाते हैं। शरीर के साथ घनिष्ठ नहीं, शरीर स्थूल आत्मा सूक्ष्म
आकिंचन्य
दीक्षा के बाद मुनि श्री प्रणम्यसागर जी संघ में १०-१२ साल रहे, इसी आकिंचन्य भाव से Unnoticed रहे थे। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
द्रव्य / तत्त्व
द्रव्य को समझो, उस पर श्रद्धा नहीं। श्रद्धा तत्त्व पर रखो, यही कल्याणकारी है। हालाँकि तत्त्व पराधीन है जैसे दीपक तथा बाती द्रव्य हैं, प्रकाश
ज्ञान
ज्ञान कोहरे में चलने जैसा होता है, जितना बढ़ते जाओगे चीजें स्पष्ट होती जायेंगी, फिर भी अनंत अनदेखा रह जायेगा। अन्य दर्शनों में अनदेखा ईश्वर
कर्म के प्रभाव
1. ज्ञानावरण/दर्शनावरण – आवरण घटने से – क्षयोपशमिक-भाव 2. वेदनीय – कर्मोदय से – औदायिक-भाव असाता के कर्मोदय से – शारीरिक/पारिवारिक दु:ख। बाहरी उपाय तभी
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