Category: पहला कदम

आकस्मिक मरण

आकस्मिक मरण में भी व्रती (देश/महाव्रती) का समाधि-मरण ही माना जायेगा क्योंकि उनके जीवन पर्यंत का संकल्प था। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Read More »

कर्म-फल और पुरुषार्थ

आत्मा में रागद्वेष के कर्मोदय में आप रागद्वेष ना भी करना चाहे तो भी करना पड़ेगा, उससे बंध भी होगा ही। कारण ? 1. कर्म

Read More »

भव्यता / भक्ति

भव्य मंदिरों में भक्ति ज्यादा आती है, समवसरण सबसे ज्यादा भव्य होते हैं, मन्दिर भी समवसरण के रूप होते हैं। पर देवता अपने-अपने भव्य मन्दिरों

Read More »

असत्य

असत्य यानि प्रमाद (असावधानी) पूर्वक कहे गये शब्द। यदि कोई सावधानी पूर्वक असत्य कहे तो प्रमाद/असत्य न होगा? होगा, जैसे सावधानी पूर्वक किसी जीव को

Read More »

तटस्थ

आचार्य शिष्यों को संघ से बाहर नाराज़ होकर नहीं भेजते बल्कि प्रभावना व संघ फैलाने के लिये भेजते हैं। उस समय आचार्य की दृष्टि तटस्थ

Read More »

निदान

निदान भोगाकांक्षा के भाव से होता है। मुनि बनने की भावना, प्रशस्त निदान है(भगवती आराधना), पर है तो यह भी कांक्षा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Read More »

व्रती को शल्य

व्रती को 3 शल्य (माया, मिथ्या, निदान) नहीं होतीं, बाहुबली जी को भी नहीं थीं। पर शल्य इन तीन के अलावा भी बहुत प्रकार की

Read More »

द्रव्य/भावलिंगी

जैसे पाप बाहर से तथा भीतर से भी होता है, ऐसे ही सम्यग्दृष्टि और अणुव्रती भी द्रव्यलिंगी तथा भावलिंगी होते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

May 7, 2022

January 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031