Category: पहला कदम
प्रमाद में हिंसा
प्रमाद में यदि कोई लेटा है तो हिंसा कैसे ? क्योंकि वह अपने चैतन्य प्राण का घात कर रहा है/ अपने स्वभाव में नहीं रह
बंध / निर्जरा
पाप की निर्जरा में पुण्यबंध भी होगा। ऐसे ही पुण्यानुबंधी में पाप की निर्जरा भी होगी। आगम में दसवें गुणस्थान तक किसी भी पुण्य प्रकृति
शास्त्रों में सौन्दर्य वर्णन
प्रथमानुयोग में संसारियों तथा ठाठ-बाट का वर्णन क्यों ? ताकि पहले जान लें कि… त्याग ज्ञानपूर्वक ही होता है। जिनको प्राप्य था, उन्होंने त्यागा क्यों
मोक्ष-तत्व
भगवान ने मोक्ष को तत्व कहा है, द्रव्य नहीं, निकला द्रव्य से ही है जैसे रोटी गेंहू से। फल द्रव्य है, सुगंधित रस तत्व। हम
पात्र/क्षेत्र/काल की शुद्धता
पात्र/क्षेत्र/काल की शुद्धता से मन/भावों में शुद्धि आती है जिससे आहारादि में विशेषता आ जाती है। आचार्य कुंदकुंद स्वामी ने अकाल में स्वाध्याय किया, उनकी
अनुशासन
अनुशासन-हीनता होगी तो पाप का अंत कभी नहीं होगा, जीवन निर्बल/ गया बीता होगा। अनुशासन से व्रतों/नियमों की रक्षा वैसे ही होती है जैसे कांटों
अचौर्य
अचौर्य, वस्तुओं के प्रति चोरी के भाव भी नहीं रखना। शास्त्रों की चोरी* के भाव तो होने ही नहीं चाहिये, जबकि आज कुछ मुनि भी
साधना
आजकल बड़ी साधना नहीं कर सकते, तो नासा दृष्टि रखने की कर सकते हैं, इससे पर-पदार्थ से रागद्वेष कम होगा; मौन से परिचय तथा मन
अणुव्रत / प्रतिमा
अणुव्रत पहले अलग से भी ले सकते हैं, प्रतिमायें बाद में। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
असंयम
प्राणी असंयम में इन्द्रिय असंयम भी है । प्राणी असंयम द्वेष तथा राग की अधिकता से होता है । राग से कैसे ? जैसे द्विदल
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