Category: पहला कदम

लब्धियाँ

क्षयोपशम-लब्धि में पाप से घ्रणा तथा कल्याण की ललक आ जाती है। पर देशना-लब्धि के बिना प्रायोग्य-लब्धि में प्रवेश नहीं मिलता है। जैसे घी के

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वैराग्य

महावीर भगवान ने अन्य भगवानों की तरह गृहस्थ जीवन बिताकर वैराग्य क्यों नहीं लिया ? महावीर भगवान के समय हिंसा का वातावरण था, वैराग्य में/भगवान

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आत्मा

आत्मा ज्ञान प्रमाण है, ज्ञान ज्ञेय प्रमाण, ज्ञेय अनंत हैं; तो आत्मा कितनी शक्तिशाली हुई ! फिर आज इतनी कमजोर कैसे ? शक्तिशाली अपराधी भी

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निदान

गोताखोर को जितना नीचे जाना हो उतना ऊपर उछलना होता है/अधिक शक्त्ति लगानी होती है। जितने बड़े आकर्षण, उतने गहरे नीचे ले जाते हैं जैसे

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मरणांतिक समुद्घात

जिनको अपने कर्मों पर भरोसा नहीं होता, उनके मरणांतिक समुद्घात होता है । मुनि श्री सुधासागर जी

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तीर्थंकर का सफेद खून

भगवान की माँ का खून लाल होता है और तीर्थंकर उनके पेट में, माँ के नाल से ही सम्बंध तो तीर्थंकर का खून सफेद कैसे

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प्रमत्त

प्रमत्त अवस्था में जम्हायी आने पर मुंह पूरा खुल जाता है, पर पूरा खुलने पर भी कुछ खा नहीं सकते। सुभद्रा की प्रमत्त अवस्था की

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धर्म

धर्म चेतन है क्योंकि यह धर्मात्माओं के आधार से रहता है। मुनि श्री महासागर जी

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टंकोत्कीर्ण

“टंकोत्कीर्ण” शब्द का प्रयोग आत्मा की शुद्ध अवस्था के लिये आचार्य श्री अमृतचंद्र सूरी जी ने किया है, अन्य किसी आचार्य ने इसका प्रयोग नहीं

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सम्यग्दृष्टि / मिथ्यादृष्टि

बाह्य क्रियायें दोनों की एक सी, सम्यग्दृष्टि उन क्रियाओं को विभाव मानकर, जबकि मिथ्यादृष्टि स्वभाव मानकर करता है। मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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