Category: पहला कदम

कृत्रिम

वैभव हमेशा परिग्रह ही नहीं, अनुग्रह* भी होता है। *Grace आर्यिका श्री विज्ञानमती माताजी

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हितैषी / दुश्मन

हितैषी और दुश्मन की क्रियाएं (बाह्य) एक सी होती हैं; दोनों ही असहाय करने का प्रयत्न करते हैं। मुनि श्री सुधासागर जी

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कर्म-फल चेतना

पेड़ दूसरों को फल और छाया देते हैं; ख़ुद नहीं लेते। फिर भी उन्हें पुण्य नहीं; ऐसा क्यों? उनके दूसरों को देने के भाव नहीं

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आहार दान

पंचाश्चर्य आहार-दान पर ही होते हैं; तीर्थंकरों के कल्याणकों पर भी नहीं। आर्यिका श्री विज्ञानमती माताजी

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पूजा मूर्ति की या मूर्तिमान की ?

मूर्तियों के पंचकल्याणक तो अलग-अलग तिथियों पर मनाते हैं, लेकिन उन मूर्तियों की पूजा में मूर्तिमान के कल्याणकों की वास्तविक तिथियाँ ही बोलते हैं। तो

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आत्मा को जानना

आत्मा के अस्तित्व का एहसास तो मिथ्यादृष्टि भी करता है, पर सम्यग्दृष्टि आत्मा की त्रैकालिक अवस्था पर विश्वास करता है। चिंतन

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व्यवहार / निश्चय

व्यवहार नीति है। रानी चेलना ने मुनि के शरीर से चींटियां हटायीं। निश्चय धर्म है। नीति धर्म की रक्षा करती है। आचार्य अमृतचंद्र सूरि ने

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पुदगल

पुदगल पुदगल में रहता भी है, पुदगल पुदगल को खाता भी है, पुदगल पुदगल का निर्माण भी करता है । जैसे Teen Sheet से कार,

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विवेक

दीक्षा के 4-5 माह तक सोते नहीं थे। एक रात गिर गये; चोट लग गयी। आचार्य श्री ने कहा, “यह मुनि पद की विराधना है।

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मंगल आशीष

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