Category: पहला कदम

दृष्टि

द्रव्य-दृष्टि 》》》 नीति दृष्टि है, युधिष्ठिर ने धर्मराज होकर भी झूठ बोला। दिव्य-दृष्टि 》》》 सम-दृष्टि है, धर्मात्मा/अधर्मात्मा, मरने/जीने में समभाव। मुनि श्री सुधासागर जी

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संज्ञा

आहार, भय, मैथुन और परिग्रह में तीन की अभिलाषा तो प्रत्यक्ष है । पर भय को इच्छा कैसे समझें ? भय कब ? जब किसी

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सोच

बाहुबली : मेरा-मेरा, तेरा-तेरा । भरत : मेरा-मेरा, तेरा भी मेरा । वैराग्य के बाद : जो तेरा सो तेरा, जो मेरा वह भी तेरा

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ज्ञान-दान

मुनि अपने लिए पढ़ते/ लिखते हैं, उसमें से औरों को ज्ञान-दान भी कर सकते हैं । जो दूसरों के लिए ही ज्ञान अर्जित करते हैं,

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दक्षिण में धर्म

चंद्रगुप्त मौर्य के सपनों के अनुसार दक्षिण में धर्म रहेगा । उत्तर में अकाल पड़ने पर आचार्य श्री भद्रबाहु जी 12 हजार शिष्यों के साथ

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नियोग

नियोग का शाब्दिक अर्थ – आदेश/ काम में लगाना/ उपयोग । “नियुक्ति” भी नियोग से ही बना है । कमलकांत जैसवाल आगम में – अप्रतिहार

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णमोकार

पूर्ण मंत्र । पाँचों परमेष्ठियों को एक सा सम्मान । इसीलिए उन सबके लिए एक सा संबोधन – “नमोस्तु” । जबकि उनके नीचे वालों के

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काल-द्रव्य

कालों (4थे काल से मोक्ष जाते हैं, अगले पल से मोक्ष जाना बंद हो जाता है । पर इसका कारण जीव व उसके कर्म होते

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गुरु

भावलिंगी साधु खुद बनते हैं, गुरु को शिष्य बनाता है । मानव खुद बनते हैं, पिता को बेटा बनाता है । अरिहंत खुद बनते हैं,

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दर्शन / ज्ञान का क्रम

सबसे पहले दर्शन, फिर ज्ञान (मिथ्या); जो बताएगा – सच्चे देव, गुरु, शास्त्र तथा सच्ची श्रद्धा क्या होती है और इसके जानने/मानने से ही सम्यग्दर्शन

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मंगल आशीष

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