Category: पहला कदम

आस्रव

आस्रव = आ + स्रव = सब ओर से झरना । मन, वचन, काय की प्रवृत्तियों से आत्मा में परिस्पंदन, इससे कर्म-वर्गणाओं के कर्म रूप

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धर्म / धर्मात्मा

धर्म पर्याय है, धर्मात्मा वस्तु है; जिसके सहारे धर्म रहता है। मुनि श्री सुधासागर जी

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आस्रव

सात तत्त्वों में पहले जीव, अजीव तब आस्रव कहा है, यानि आस्रव जीव + अजीव से होता है, न अकेले जीव से, न अकेले अजीव

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नियतवाद

नियतवाद/क्रमबद्ध पर्याय किसी भी पूर्व आचार्यों ने नहीं कही । ये तो अमरबेल है, जिसकी जड़ नहीं पर आधार को ही चूस लेती है /

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गुरु / भगवान

गुरु जो अधूरा न हो, वरना वह पहले अपनी प्रगति पर ध्यान देंगे। पूर्ण गुरु जैसे भगवान कृतकृत्यः हो गये हैं, पर भगवान तो अब

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जिनवाणी सम्मान

जिनवाणी लाते समय “सावधान” सिर्फ जिनवाणी को सम्मान देने के लिये ही नहीं, बल्कि श्रोताओं का प्रमाद छुड़वाने/ एकाग्रता बनवाने के लिये भी बोला जाता

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निशंकित / व्रत

कृष्ण जी व्रत नहीं ले सकते थे पर निशंकित अंग पक्का था – जिनवाणी पर शंका नहीं थी, सो सबको व्रत लेने के लिये प्रेरित

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निर्वाण-दिवस

लाडू सब तरफ़ से मीठा होता है, आत्मतत्व भी । रागरंग में भी विराग का अनुभव करते हैं । मृत्यु पर रोते नहीं (क्योंकि खुद

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राग / वैराग्य / वीतराग

आत्मानुराग में राग है, वीतरागता में नहीं । वैराग्य में प्रवृत्ति है, वीतरागता में नहीं । मोक्षमार्ग/साधना की वैराग्य प्रथम सीढ़ी है, वीतरागता अंतिम ।

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मंगल आशीष

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