Category: डायरी

मोह

मां अपने नालायक बच्चे को ताने मारती है… देख ! पड़ोसी का बच्चा कितना लायक है। पर जब कुछ देने की बात आती है तो

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लोगों के प्रकार

दो प्रकार के लोग बंधनीय –> जो बंध को पा रहे हैं जैसे कैदी, बलात सीमा में रखते हैं ताकि अमर्यादित न होने पायें। वंदनीय

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सीख

इंसान हमेशा तकलीफ में ही सीखता है। खुशी में तो पुराने सबक भी भूल जाता है। (रेनू जैन – नया बजार, ग्वालियर)

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चारित्र

चारित्र पर किताब बनाना और चारित्र को किताब बनाना – दो अलग बातें हैं। साधु दूसरी पर काम करता है और श्रावक पहली पर। मुनि

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वक्त

इसी से जान गया मैं कि बख़्त ढलने लगे। मैं थक के छाँव में बैठा तो पेड़ चलने लगे। फ़रहत अब्बास शाह अपने हाथों की

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सत्संग

सन्यासी पृथ्वी का नमक है – बाइबिल, (मात्रा में कम, महत्व बहुत)। सत्संग ही स्वर्गवास है। ब्र. डॉ. नीलेश भैया

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शांति

मरण के समय प्राय: कहा जाता है “दिवंगत आत्मा को शांति मिले”। इसका क्या अर्थ हुआ ? … उनके जीवन में पहले वैभव आदि सब

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दान आदि

दान…..जो श्रद्धा के साथ आंशिक रूप से दिया जाता है। त्याग… तेरा तुझको अर्पण यानी कर्म का कर्म को* कर्म से मुक्ति** पाने के लिए।

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दुनिया

दुनिया उसको कहते भैया जो माटी का खिलौना* है, मिल जाए तो माटी** भैया, ना मिले तो सोना*** है। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी(29 अक्टूबर)

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भक्ति

भक्ति में चारों दान –> मानसिक पुष्टि (औषधि दान), तालियों से शरीर पुष्ट (आहार), परम्परा निभाई (अभय), विनती आदि (ज्ञान दान)। ब्र. डॉ. नीलेश भैया

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मंगल आशीष

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