Category: पहला कदम

विसंवाद

विसंवाद…. अन्यथा प्रवृत्ति कराना/ मिथ्यामार्ग पर लगा देना/ दुर्व्यवहार/ ग़लत को सही ठहराना जैसे अंडा शाकाहारी होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र –

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सम्यग्दर्शन

यदि सम्यग्दर्शन को बंध (देवायु) का कारण मानें तो मुक्ति का क्या कारण मानें ? दोनों कारण मानने में भी आपत्ति नहीं, जैसे छाता गर्मी

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वर्तमान

वर्तमान ही मेरा है। भूत और भविष्य तो “पर” हैं। भूत अटकाने वाला, भविष्य भटकाने वाला। वर्तमान में स्थिरता है। चिंतन

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दिगम्बरत्व / अचेलकत्व

दिगम्बरत्व मुनियों के मूलगुणों में (21) तथा अचेलकत्व शेष गुणों (7) में। दोनों का अर्थ एक सा होते हुए भी दिगम्बरत्व बाह्य तथा अचेलकत्व अंतरंग(आसक्ति

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सहनशक्ति की सीमा

सहनशक्ति की सीमा आगमानुसार 10 भव है जो भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व के भवों में देखी जाती है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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स्वभाव / विभाव

जीव का स्वभाव तो दया है तो हिंसक पशुओं में कैसे घटित करेंगे ? पर्यायगत विभाव को स्वभाव कहने लगे हैं। (मनुष्य पर्याय से अहिंसक

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विभाव / स्वभाव

विभाव – जिसमें चाह कर भी लगातार/ बहुत देर नहीं रह सकते, तात्कालिक। स्वभाव – न चाहते हुए भी उस स्थिति में वापस आना पड़े,

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आचार्य उमास्वामी

तत्त्वार्थ सूत्र के रचयिता आचार्य उमास्वामी के नाम में “उमा” उनकी माँ तथा “स्वामी” उनके पिता का नाम है। माता-पिता को सम्मान देने का यह

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अनंतता

अनंत तो बहुत स्थानों पर प्रयोग होता है पर उनमें भी छोटा-बड़ा घटित होता है। जैसे जीव अनंत, पर पुद्गल अनंतानंत, काल उससे भी बड़ा

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मंगल आशीष

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November 15, 2024

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