Category: डायरी

कार्य

स्थान तथा रूप परिवर्तन ही कार्य होता है। क्षु.श्री जिनेन्द्र वर्णी जी

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ज्ञान

ज्ञान का समताभावी रुप… चारित्र, शंका रहित रूप……………. श्रद्धा। शांतिपथ प्रदर्शक

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दिल / दिमाग

दिमाग को खूब पढ़ाना, पर दिल को अनपढ़ ही रखना; ताकि भावनाओं को समझने में हिसाब-किताब न करे। (एकता- पुणे)

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खुशनसीब

खुशनसीब वह नहीं जिसका नसीब अच्छा है, बल्कि वह जो अपने नसीब को अच्छा मानता है। (महेन्द्र जैन- नयाबाजार मंदिर)

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श्रद्धा

बीमार व्यक्ति को गुरु सम्बोधन करने गये। वहाँ कुर्सी रखी थी (व्यक्ति के भगवान के लिये)। वह भगवान को कुर्सी पर कल्पना में विराजमान करके

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मान

चारों कषायों (क्रोध, मान, माया और लोभ) में से सिर्फ मान (गर्व) का “मान” किया जाता है, कैसी विडम्बना है ? कमल कांत

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गुण

गुण जब तक गुणीजनों के पास रहता है, उसकी गुणवत्ता बनी रहती है। अवगुणी के पास होने पर वह अपनी गुणवत्ता खो देता है। (जैसे

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मंगल आशीष

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