Category: पहला कदम
तत्वार्थश्रद्धानं सम्यग्दर्शनम्
श्रद्धा पुनरावृत्ति पर Depend करती है। पर शाश्वतता पीछे छुप जाती है जैसे बार-बार कहना –> ये ही सत्य है – ये ही सत्य है।
जीवों के प्रकार
जीव तीन प्रकार के: 1) धन है, इससे अनभिज्ञ: जैसे किसी ने मकान बेचा; उसके नीचे ख़ज़ाना था, किंतु उसे मालूम नहीं। ऐसे ही अभव्य
निशंक
प्रारंभिक अवस्था में इतनी शंका कर लें कि आगे शंकाहीन हो जाएं। ब्र. डॉ. नीलेश भैया
शील
छहढाला में मुनियों के 18000 शील संकल्प-रुप कहे हैं। पूर्णता तो अयोग-केवली के होती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 44)
सिद्धांत ग्रंथ
सिद्धांत ग्रंथ गृहस्थों को पढ़ने की मनाही क्यों है ? साधारण व्यक्ति को भोजन करने में विशुद्धता नहीं चाहिये, मुनि के लिये बहुत। ऐसे ही
सम्यग्दृष्टि
हर संसारी जीव में स्वभाव तथा विभाव का मिश्रण होता है। जिसमें स्वभाव की बहुलता रहती है, वह सम्यग्दृष्टि। ब्र. डॉ. नीलेश भैया
संघ
रत्नत्रय से युक्त एक मुनि भी संघ होता है क्योंकि रत्नत्रय में तीन हैं। संघ –> ऋषि (ऋद्विधारी), मुनि (अवधि/ मन:पर्यय/ केवलज्ञानी), यति (मूल/ उत्तर
केवली में धातुऐं
केवली में धातुएँ स्थिर होती हैं। इसलिए शरीर के लिए कुछ करना* नहीं होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थसूत्र 6/13) * कवलाहार।
दंड
मन, वचन, काय की दुष्प्रवृत्ति को दंड कहते हैं। इसी से तीन भेद कहे गये हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 46)
निजपद
निजपद दीजै मोहि….. 1. निजपद = भगवान का पद। 2. निजपद = निज (स्वयं) + पद (पैर) = अपने पैरों पर खड़ा होना/ स्वावलम्बी होना।
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