Category: पहला कदम
देवों में गति
देवों में पंचेंद्रिय संज्ञी ही जाते हैं। असंज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्तक –> भवनत्रिक में ही। सम्यग्दृष्टि देवों में ही, पांचवे गुणस्थान वाले 16 स्वर्ग तक। मुनि
कर्म-फल
रमेश ने मित्र सुरेश से 2000 रु. उधार लिये। रमेश के मन में बेईमानी आ गयी। सुरेश कर्म-सिद्धांत का विश्वासी, कहता –> लेकर जायेगा नहीं!
उत्तम क्षमा धर्म
एकेन्द्रिय जीवों से क्षमा मांगने/ धारण करने के कारण —- 1. उनके बहुत उपकार हैं। उनके बिना हमारा जीवन चल नहीं सकता। 2. कुछ वनस्पतिकायिक
कर्म-बंध/उदय
जितना तीव्र कषाय के साथ कर्मबंध होगा उतनी देर से उदय में आयेगा, इसीलिए पापी लोग जो पाप तीव्रता के साथ करते हैं उनका उदय
कृतज्ञता / मान
घोर गर्मी में बारिश से मौसम सुहाना हो गया। मुँह से निकला…. प्रभु ! धन्यवाद। प्रभु तो कर्ता नहीं है, फिर ? कृतज्ञता। फायदा ?
सम्यग्दर्शन / स्त्री पर्याय
सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से पहले यदि स्त्री पर्याय बांध ली हो तो वह संक्रमित होकर पुरुष पर्याय में परिवर्तित हो जाती है। श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार
ज्योतिष विमान
तिर्यक लोक (मनुष्य लोक) के ज्योतिष विमान भ्रमण करते रहते हैं। अन्य द्वीप/ समुद्रों के आधे भ्रमण करते हैं, आधे अवस्थित। स्थिरता केवल तारों में
आकाश
अवगाहन तो मुख्य रूप से आकाश में ही होता है। इसलिए आकाश को “विभु” कहा है (सबका आधार/ सर्वसामर्थ्यवान प्रभु)। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ
परनिन्दा
निधत्ति, निकाचित कर्मबंध का एक और कारण है…. लोगों में वो दोष लगाना जो उनमें हैं ही नहीं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
अवगाहन
आकाश की अवगाहन शक्ति से संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी अनंत द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में रह रहे हैं। द्रव्य के अंदर अवगाहन/ संकोच-विस्तार स्वभाव भी
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