Category: पहला कदम

मिथ्यात्व के कारण

हाथ की चार उंगलियां अविरति आदि तथा अंगूठा मिथ्यात्व के कारण। चारों उंगलियां मिथ्यात्व की सहायक हैं। जब मुट्ठी बँधती* है तब मिथ्यात्व(अंगूठे) को अविरति

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तीर्थंकर-प्रकृति बंध

तीर्थंकर-प्रकृति बंध चौथे से सातवें गुणस्थान में (जब पहली बार बंधती है)। यह प्रथमोपशम, द्वितीयोपशम, क्षयोपशम या क्षायिक सम्यग्दृष्टि के बंधती है। एक बार बंधने

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कषाय

कषाय = कष (संसार) + आय (Income), कषाय = जो सांय-सांय करे। मुनि श्री मंगलसागर जी

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विसंवाद

विसंवाद…. अन्यथा प्रवृत्ति कराना/ मिथ्यामार्ग पर लगा देना/ दुर्व्यवहार/ गलत को सही ठहराना जैसे अंडा शाकाहारी होता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र –

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सम्यग्दर्शन

यदि सम्यग्दर्शन को बंध (देवायु) का कारण मानें तो मुक्ति का क्या कारण मानें ? दोनों कारण मानने में भी आपत्ति नहीं, जैसे छाता गर्मी

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वर्तमान

वर्तमान ही मेरा है। भूत और भविष्य तो “पर” हैं। भूत अटकाने वाला, भविष्य भटकाने वाला। वर्तमान में स्थिरता है। चिंतन

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दिगंबरत्व / अचेलकत्व

दिगंबरत्व मुनियों के मूलगुणों में (21) तथा अचेलकत्व शेष गुणों (7) में। दोनों का अर्थ एक सा होते हुए भी दिगंबरत्व बाह्य तथा अचेलकत्व अंतरंग(आसक्ति

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सहनशक्ति की सीमा

सहनशक्ति की सीमा आगमानुसार 10 भव है जो भगवान पार्श्वनाथ के पूर्व के भवों में देखी जाती है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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स्वभाव / विभाव

जीव का स्वभाव तो दया है तो हिंसक पशुओं में कैसे घटित करेंगे ? पर्यायगत विभाव को स्वभाव कहने लगे हैं। (मनुष्य पर्याय से अहिंसक

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मंगल आशीष

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