Category: पहला कदम

तीर्थंकर

तीन परिस्थितओं में तीर्थंकर जन्म लेते हैं…. 1) आचरण का विनाश हो रहा हो। 2) मिथ्यादृष्टिओं की लक्ष्मी और ख्याति बढ़ रही हो। 3) जैन

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वेद बंध

वेद बंध…. स्त्री वेद → स्त्रियों से बहुत आकर्षित पुरुष को। स्त्रियाँ अपनी पर्याय को बहुत महत्व देती हों, शृंगार में बहुत रुचि। पुरुष वेद

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आयुबंध

आयुबंध गुणस्थान के अनुसार बंधती है। ना कि अंतिम समय के क्षणिक परिणाम के अनुसार। जैसे चौथे गुणस्थानवर्ती को देवआयु ही, चाहे अंत समय के

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भाव

मारीच के जीव के पास द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव उत्कृष्ट थे। पर 5वाँ निमित्त भाव, जघन्य था। यह भाव इतना शक्तिशाली होता है कि वह

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अवधिज्ञान

अवधिज्ञान, धर्म/ शुक्ल ध्यानों में सहायक हो सकता है जैसे लोकाकाश का स्वरूप देखकर/ सीमंधर स्वामी का समवसरण देख कर धर्म/ शुक्ल ध्यानों में सहायक

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परिहार-विशुद्धि

परिहार-विशुद्धि संयम पाने की योग्यता 30 वर्ष (भरत ऐरावत क्षेत्र में, विदेह क्षेत्र में 8 वर्ष) (कारण ?) ध्यान करने योग्य योग्यता आ जाती है,

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तप

अकर्तृत्व के त्याग रूप चारित्र* में जो उद्योग और उपयोग** होता है/ छल कपट त्याग होता है, उसे तप कहते हैं।…(पृष्ठ.101) * आलोचना व प्रतिक्रमण

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भूत-अनुकम्पा

भूत-अनुकम्पा…. भूत = आयु + शरीर वाले (जो शरीर को ही स्वयं मानते हैं)। अनुकम्पा = दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानना। तब पीड़ा

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अगम्य स्थान

आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया की आगम में अगम्य स्थान के बारे में वर्णन आता है। जिसमें अवधिज्ञान

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आहार

लेपाहार → एकेंद्रियों के। कवलाहार → 2-5 इंद्रिय जीवों में। तेजाहार → अंडज जीवों में। नोकर्माहार → 1-13वें गुणस्थान में। कर्माहार → सब में (14वाँ

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मंगल आशीष

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