Category: पहला कदम
परिहार-विशुद्धि
परिहार-विशुद्धि संयम पाने की योग्यता 30 वर्ष (भरत ऐरावत क्षेत्र में, विदेह क्षेत्र में 8 वर्ष) (कारण ?) ध्यान करने योग्य योग्यता आ जाती है,
तप
अकर्तृत्व के त्याग रूप चारित्र* में जो उद्योग और उपयोग** होता है/ छल कपट त्याग होता है, उसे तप कहते हैं।…(पृष्ठ.101) * आलोचना व प्रतिक्रमण
भूत-अनुकम्पा
भूत-अनुकम्पा…. भूत = आयु + शरीर वाले (जो शरीर को ही स्वयं मानते हैं)। अनुकम्पा = दूसरे की पीड़ा को अपनी पीड़ा मानना। तब पीड़ा
अगम्य स्थान
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने एक प्रश्न के उत्तर में बताया की आगम में अगम्य स्थान के बारे में वर्णन आता है। जिसमें अवधिज्ञान
आहार
लेपाहार → एकेंद्रियों के। कवलाहार → 2-5 इंद्रिय जीवों में। तेजाहार → अंडज जीवों में। नोकर्माहार → 1-13वें गुणस्थान में। कर्माहार → सब में (14वाँ
वैयावृत्ति
चारित्र की वैयावृत्ति कैसे करें ? अनुमोदना से। आचार्य श्री विद्यासागर जी (स्वाध्याय श्री भगवती आराधना- भाग 1, पृष्ठ 73) सान्निध्य आर्यिका श्री पूर्णमति माता
अनशन
अनशन 9 प्रकार से किया जाता है…. मन के द्वारा, वचन के द्वारा, काय के द्वारा और तीनों ही तीनों प्रकार से कृत, कारित, अनुमोदना
दु;ख में भगवान
तीव्र मिथ्यादृष्टि दु:ख में भी धर्म से दूर रहता है जैसे बीमारी में कोई डॉक्टर से दूर भागता हो या बच्चे इंजेक्शन से यह समझें
कर्मोदय
कर्मोदय रोने के लिए नहीं, कर्म धोने के लिए/ विशुद्धि बढ़ाने के लिए। वैसे तो अनादि से हम सब मिथ्यादृष्टि ही हैं। इससे सिद्ध होता
पंचम-काल में धर्म
पंचम-काल में धर्म कब तक रहेगा ? आचार्यों के तीन मत हैं → 18500 वर्ष तक 7000 वर्ष तक 4000 वर्ष तक अवगाहना से भी
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