Category: पहला कदम
उपशम भाव
उपशम भाव…. दर्शन मोहनीय की अपेक्षा चौथे गुणस्थान से। चारित्र मोहनीय की अपेक्षा सातवें गुणस्थान से। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
भोग-भूमि
जघन्य भोग भूमि दो प्रकार की … कुभोग भूमि तथा सुभोग भूमि। मुनि श्री अजितसागर जी/ऐलक श्री विवेकानन्दसागर जी
पूजा / छह आवश्यक
पूजा में छह आवश्यक* घटित किये जा सकते हैं; पर घटित होते नहीं हैं। मुनि श्री अजितसागर जी * गुरुपास्ति, देवदर्शन/ पूजा, दान(यहाँ ज्ञान), तप(इच्छानिरोध),
अवधिज्ञान
क्या अवधिज्ञान भव्यता/ अभव्यता को बता सकता है ? प्राय: नहीं, लेकिन कर्मों की आगे/ पीछे की स्थिति (अंत: कोड़ाकोड़ी सागर) दिख जाए तो कथंचित
इन्द्र / जन्माभिषेक
भरत क्षेत्र के तीर्थंकरों का जन्माभिषेक सौधर्म इन्द्र, ऐरावत का ईशान, विदेह पूर्व व पश्चिम के सानत्कुमार व माहेन्द्र स्वर्ग के इन्द्र respectively, करते हैं।
केवलज्ञान
केवलज्ञान में भविष्य का ज्ञान निश्चित है। पर हमारे लिए केवलज्ञान का स्वरूप ही जानना उपयोगी है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 1/29)
अमृत
रस ऋद्धियों में मधुरादि सारे अच्छे रसों की ऋद्धियाँ तो आ गयीं फिर अमृत-ऋद्धि में कौन सा रस होगा ? योगेन्द्र अमृत-ऋद्धि में अलग Quality
सम्यग्दर्शन
मिथ्यात्व के ऊपर श्रद्धान करने से भी सम्यग्दर्शन हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (पाप को पाप मान लिया तो पुण्य पर श्रद्वान हो
माया
माया-कषाय अंतर्मुहूर्त के लिये, माया-शल्य लम्बी अवधि के लिये। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
संस्थान-विचय
गुरु/ भगवान के आकार का चिंतन करना भी संस्थान-विचय होता है। शांतिपथ प्रदर्शक
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