Category: पहला कदम

अस्तित्व / सहकारिता

सब द्रव्य साथ-साथ रहकर भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं। एक दूसरे के स्वभाव को छेड़ते नहीं। इसीलिये कहा कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का

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तत्त्वार्थ सूत्र

तत्त्वार्थ सूत्र पूर्ण रूप से सिद्धांत ग्रंथ नहीं है क्योंकि उसमें दो अध्याय चरणानुयोग के भी हैं। इसलिये इसे अष्टमी चौदस को पढ़ा जा सकता

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तीर्थंकर भारत में

तीर्थंकर भारत में ही क्यों ? तीर्थंकर पुण्यात्माओं का कल्याण करने को बनते हैं (अपने कल्याण के साथ-साथ), अवतारवाद से भिन्न, जो पापियों का नाश

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सम्यग्दर्शन / मिथ्यादर्शन

निरपेक्ष समझ –> सम्यग्दर्शन। सापेक्ष समझ –> मिथ्यादर्शन। इंद्रिय सापेक्ष जैसे शिखर जी की वंदना में पहले मोटे कपड़े प्रियकर, बाद में बोझ। यानी सुख

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अभ्यास

कराटे में 1000 actions खतरनाक नहीं, वह एक खतरनाक होता है जिसका अभ्यास 1000 बार किया गया हो। जैसे भरत चक्रवती गृहस्थ जीवन में लगातार

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लोक

जैन दर्शन में लोक, जीव तथा अजीव से मिलकर बना है (जीवमजीवं दव्वं – द्रव्य संग्रह)। विज्ञान भी यही मानता है बस नाम देता है

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सल्लेखना

योद्धा दुश्मन को जीतने के लिये तन, मन, वचन सब लगाकर जीत तो लेता है पर उसका इहभव और परभव द्वेषपूर्ण होते हैं। क्षपक सब

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संस्कार

संस्कार बुरे भी होते हैं। अवगुण बढ़ने को वर्धमान कह सकते हैं पर आत्मकल्याण के परिप्रेक्ष्य में हीयमान ही कहेंगे। मुनि श्री मंगल सागर जी

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एकत्व

जीव अकेला ही कर्म करता है और अकेला ही संसार में हिंडोले की तरह भ्रमण करता रहता है। अकेला ही पैदा होता है, अकेला ही

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अनुयोग

बनती हैं भूमिकायें – प्रथमानुयोग से, आतीं हैं योग्यतायें – करुणानुयोग से, तब पकती पात्रतायें – चरणानुयोग से, फिर आत्मा झलकती – द्रव्यानुयोग से। मुनि

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मंगल आशीष

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