Category: वचनामृत – अन्य

एकत्व

आइने के सौ टुकड़े करके मैंने देखे हैं। एक में भी अकेला था, सौ में भी अकेला। मुनि श्री महासागर जी

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निंदा

आलोचन से लोचन खुलते हैं ; स्वागत करें। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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संस्कार

संस्कार देने की चीज़ नहीं, जगाये जाते हैं । उन्हें बनाये रखने के लिये, सुसंगति दी जाती है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी

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धर्म / नीति

धर्म: स्वमुखी/आत्ममुखी, निश्चय, परमार्थ में जीना सिखाता है। नीति: प्राणमुखी, व्यवहार, संसार में जीना सिखाती है। मुनि श्री सुधासागर जी

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बुद्धि / समझदारी

बुद्धि में तर्क होता है; पक्ष/विपक्ष, एक तरफ़ झुकाव। समझदारी निष्पक्ष होती है; अनुभव तथा विशुद्धि से आती है। एक ज़िगज़ैग पाइप में केबॅल डालना

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अवस्थायें

अवस्थाएं…. 1. सुप्त – सुधबुध नहीं रहना। ज़्यादातर लोग इसी अवस्था के होते हैं। 2. स्वप्न – नयी दुनिया की रचना। 3. जाग्रत – जीवन

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लोभ

लोभ = किसी वस्तु को पाने की तीव्र इच्छा। चीजें भाएं, तो बुराई नहीं, पर वे चीजें लुभायें नहीं। जैसे किसी का सुंदर मोबाइल देखकर

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धर्मी / आचरणवान

ज़रूरी नहीं कि धर्मी आचरणवान हो ही। हरी बत्ती पर गाड़ी चलाए, धर्मी; लाल पर रोके, आचरणवान। आप धर्मी हों, तो पाप करना छोड़ दें;

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पिता की सम्पत्ति

बच्चों को पिता की सम्पत्ति पर दृष्टि नहीं रखनी चाहिये। वे दें, तो सहेजा जैसी मात्रा में लें, जिससे आप अपना ख़ुद का दही जमा

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स्व-पर हित

पड़ौसी के घर की आग बुझाने को महत्त्व दें। इस परोपकार से अपना भी भला – अपना घर बचेगा। दो रोटी में से आधी रोटी

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मंगल आशीष

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