Category: पहला कदम
यत्नाचार/वीर्याचार
यत्नाचार = ध्यान पूर्वक यत्न वीर्याचार = यत्नाचार को Support करने/उसे ताकत देने के लिये । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
वीर्याचार
ज्ञानाचार, दर्शनाचार, चरित्राचार, तपाचार के बाद वीर्याचार इसलिये लिया गया है ताकि चारों निर्दोष रहें । वीर्याचार उनमें Extra Fource भरता है जैसे दर्शनाचार में
सहस्त्रकूट
सहस्त्रकूट जिनालयों में प्रतिमाओं पर चिन्ह नहीं होते, वे अनंत चौबीसीयों को दर्शाती हैं । भगवान के शरीर के 1008 चिन्हों के प्रतीक स्वरूप ।
तीर्थंकर / पुरुष
भूतकालीन चौबीसी में 3 नाम स्त्रीयों जैसे लगते हैं जैसे “भानुमति”, पर यहां पर “मति” से बुद्धि का तात्पर्य है – भानु* जैसी बुद्धि ।
सहायता
सहायता आदि शुभकर्म गृहस्थ अवस्था में ही कर सकते हो, सो कर लो ! मुनि बनने के बाद अपने कमण्डल का पानी भी प्यासे को
सल्लेखना और मोक्ष
सल्लेखना के समय केवलज्ञान नहीं होता क्योंकि सल्लेखना संकल्पपूर्वक ली जाती है । लेकिन सल्लेखना वाले कम से कम 3 भव में मोक्ष जा सकते
झारी
झारी पर नारियल जरूरी नहीं, मंगल-कलश पर जरूरी होता है । पर टोंटी वाली झारी सही नहीं, उसमें जीव राशि बनी/मरती रहती है । मुनि
निमित्त / उपादान
मिट्टी के घड़े का रूप/ परिणमन कुम्हार के निमित्त से, उपादान मिट्टी का । भविष्य में उस मिट्टी/घड़े का परिणमन उसके खुद के उपादान से
हिंसक जानवरों को संबोधन
इनको दूर से संबोधन देना चाहिये । स्वभाव/पापोदय से वह हमला भी कर देते हैं । मुनि श्री सुधासागर जी
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