Category: पहला कदम
अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी
अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोगी का मतलब यह नहीं कि हर समय ज्ञान पाने में लगे रहें। ज्ञान को नायक कहा है। नायक सही दिशा में ले जाता
चरमोत्तम – देही
चरम = अंतिम + देही = शरीर ( जैसै पांडव, गजकुमार आदि ) उत्तम → 63 शलाका पुरुष उनका भी अकाल मरण संभव है। चरम
मौन-देशना
जबलपुर-प्रतिभास्थली की छात्राओं ने आचार्य श्री विद्यासागर जी के दर्शन के दौरान, एक छात्रा ने प्रश्न किया→ क्या हम आपके साथ सामायिक कर सकते हैं
वेद / लिंग
“नपुंसकानि लिंगानि” में लिंग की बात कही है। आगे “शेषास्त्रि वेदा:” में वेद की। आचार्य श्री विद्यासागर जी का चिंतन… जहाँ लिंग की बात कही
ज्ञान / कर्म धारा
ज्ञान धारा → अजायबघर में रखी वस्तुओं के प्रति दृष्टिकोण। कर्म धारा → घर/ पुत्रादि के प्रति, रागद्वेष सहित कर्ताबुद्धि। दोनों धारायें साथ-साथ नहीं चल
मंत्रों का प्रभाव
शब्द पुद्गल हैं, कर्म भी। मंत्रों के उच्चारण से दवा की तरह कर्मों की Chemistry भी Change हो जाती है। श्री लालमणी भाई
सम्यग्दर्शन की पात्रता
7वें नरक तक में सम्यग्दर्शन पाने की पात्रता है, पर छठे काल में नहीं, ऐसा क्यों ? शायद नियति कहती है… मनुष्य होकर भी ऐसे
स्त्री-कथा
स्त्री-कथा को बुरा माना पर भगवान की माँ की कथा? विकारी पर्याय को बुरा कहा, माँ/ बहन की कथा को बुरा नहीं कहा। माँ का
पुरुषार्थ
मुनिपद भारी पुरुषार्थ का फल होता है। पर कुछ मुनि बनने के बाद भी कषायों को क्यों नहीं नियंत्रित कर पाते ? पुरुषार्थ दो प्रकार
सासादन/ सम्यक्-मिथ्यात्व
“सासादन” के साथ “सम्यग्दर्शन” लगाते हैं(सासादन-सम्यग्दर्शन) क्योंकि जीव सम्यग्दर्शन से गिरकर आया है। सम्यक्-मिथ्यात्व में दोनों ओर (सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्व) से आता है इसलिये इसका
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