Category: पहला कदम

शुद्धता

सबसे ज्यादा प्रभावकारी/ शुद्धता, ध्यानरूपी अग्नि लाती है। जहाँ दवा/ योग प्रभावकारी नहीं, वहाँ ध्यान कार्यकारी होता है। यदि शुक्ल-ध्यान में 100°C ताप की अग्नि

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अच्छे/बुरे काम

अच्छे तथा बुरे कामों के लिये प्रकाश की ज़रूरत नहीं होती है। बुरे काम छुपकर अंधेरे में किये जाते हैं। अच्छे काम करने वाले अपने

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मूलगुण

28 मूलगुणों/ प्रतिमाओं में समय/ काल के साथ अंतर नहीं होता। पर श्रावकों के 8 मूलगुणों में अंतर आता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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जीव / अजीव

अजीवों* के साथ रह-रहकर हम अजीव* जैसे हो गये हैं/ परिणमन अजीव** होने लगा है। * Nonliving ** Unexpected

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मन:पर्यय

उपशम सम्यग्दर्शन के साथ मन:पर्यय नहीं होता है। मुनि श्री सुधासागर जी

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अरहंत / मन

संसारी के वचन, मन पूर्वक ही। ऐसा मन सयोगी के नहीं, उनके मन उपचार से कहा क्योंकि वचन की प्रवृत्ति हो रही है। उपचार →

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जैन दर्शन

जैन दर्शन में धर्म का विस्तार, स्वयं के विस्तार की कीमत पर नहीं। मुनि श्री सुधासागर जी

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प्रमाद

बंध के कारणों में प्रमाद को अविरति के बाद में रखा है। सो यह प्रमाद संज्वलन कषाय के सद्भाव वाला लेना है। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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णमोकार मंत्र

णमोकार मंत्र में पहले नमस्कार (णमो) फिर परमेष्ठी को ढूँढ़ा। यह नहीं कि सामने परमेष्ठी आये तब उन्हें नमस्कार किया। मुनि श्री सुधासागर जी

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मंगल आशीष

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