Category: पहला कदम
रस
रस पांच…. खट्टा, मीठा, कड़वा, कसैला, चरपरा। नमक क्यों नहीं लिया ? जिव्हा के लिये षटरस होते हैं, जिसमें ऊपर के 5+नमकीन। वैसे नमक मिष्ट
मोहनीय कर्म
दर्शन-मोहनीय कर्म – “वस्तु, शरीर मेरा नहीं है” इस सत्य को स्वीकारता नहीं। चारित्र-मोहनीय कर्म – “वस्तु, शरीर दूसरे का है” पर भोगूँगा मैं। सत्य
क्षयोपशम
सबकी शिकायत होती है कि याद नहीं रहता। पुरानी सुनी गालियाँ सब याद कैसे रहती हैं ? क्या “गालीवरण” का क्षयोपशम बहुत अच्छा है !
विग्रह गति में वेद
जिस भाव-वेद के साथ जीव का मरण होगा, विग्रह गति में वही भाव वेद रहेगा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
करण
करण यानि परिणाम/ भाव, पर व्यवहार में “करण-परिणाम” का प्रयोग 6 बार होता है → 1. प्रथमोपशम 2. क्षयोपशम सम्यग्दर्शन 3. विसंयोजना 4. द्वितीयोपशम 5.
वैयावृत्ति
इससे सम्यग्दर्शन प्रौढ़ तथा स्थितिकरण, उपगूहन व वात्सल्य पुष्ट होते हैं। वैयावृत्ति तीन प्रकार की → मानसिक, वाचनिक एवं शारीरिक हैं। मधुर वचनों से की
निषेक
1. कर्म-बंध पर निषेक रचना हो जाती है/ निश्चित हो जाती है, कर्म स्थितियों के अनुसार व्यवस्थित हो जाते हैं। 2. उदय में आते समय
स्वाध्याय
“स्वस्थ अध्यायः स्वाध्यायः” ऐसा शास्त्र पठन जिससे निजी आत्मतत्व पुष्ट/ विकसित होता हो, वह स्वाध्याय है। मात्र लिखना/ पढ़ना स्वाध्याय नहीं बल्कि आलस्य/ असावधानी के
करण में काल व परिणाम
अध:करण = सातिशय अप्रमत्त/ निचले करण परिणाम, परिणाम असंख्यात लोक प्रमाण (1 लोक के प्रदेश X असंख्यात लोक), अनेक जीवों की अपेक्षा, 1 जीव की
संयमा-संयम
संयम भाव नहीं, व्रत है। इसीलिये 5वें गुणस्थान वाले को देशव्रती कहा है। प्रत्याख्यान कषाय से संयम-भाव नहीं होता है। कषाय तो कर्मकृत भाव है
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