Category: डायरी

अविनय शब्द

भूलकर भी देव, शास्त्र, गुरु के प्रति अविनय शब्द न निकल जाऐं। क्षु. श्री जिनेंद्र वर्णी जी  (बिना मन से बोलने पर भी गलत वचन

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कर्म / पुरुषार्थ

कर्म तो बर्फ के गोले जैसे बढ़ते ही रहते हैं। पुरुषार्थ से ही उसे छोटा/ तोड़ा जाता है। कमलकांत

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किस्मत

अपनी किस्मत तो हर व्यक्ति खुद लिखता है पर लिखते समय मदहोश रहता है सो भूल जाता है कि क्या लिखा था। इसलिये ज्योतिषियों से

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सहनन

इंद्रधनुष चाहने वाले को, वर्षा सहन करनी होगी। (सलौनी- सहारनपुर)

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वर्तमान

यदि आप बार-बार भूतकाल में जाते हैं तो आप वर्तमान से ही तो चुरा रहे हो/ वर्तमान बचेगा ही नहीं। कानन विहारी

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छिनना / मिलना

बेहतर, छिनने पर विश्वास रखें; (कि) बेहतरीन मिलने वाला है। जिज्ञासा….पैसे छिन जाने पर क्या बेहतरीन मिलेगा ?… रविकांत पूर्व में आपने किसी के पैसे

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जीवों के भेद

अंडे देने वाले जीवों के कान बाहर नहीं होते जैसे कछुआ, मगरादि, बच्चे देने वालों के बाहर जैसे गाय, घोड़ादि। अनीता जी – शिवपुरी

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सृष्टि की व्यवस्था

सृष्टि अनमोल ख़जानों से भरी है पर एक भी चौकीदार नहीं है। व्यवस्था ऐसी की गयी है कि अरबों लोगों के आवागमन के बावजूद कोई

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दौलत

दौलत ऐसी तितली है जिसे पकड़ते-पकड़ते हम अपनों/ भगवान से दूर निकल जाते हैं। (सुरेश)

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मंगल आशीष

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