Category: डायरी
वृद्धावस्था में धर्म
आँखों में पड़ेगा जाला, नाकों से बहेगा नाला, लाठी से पड़ेगा पाला, कानों में पड़ेगा ताला। तब तू क्या करेगा लाला ? आर्यिका श्री पूर्णमति
दु:ख में भगवान
यदि दु:ख में भगवान याद आते हैं तो इसमें अचरज क्या ! चकोर को भी चंद्रमा अंधेरी रात में ही अच्छा लगता है। स्वाध्याय सान्निध्य
ध्यानस्थ
ध्यानस्थ… भौंरे को फूल पर गुनगुनाते समय पराग का स्वाद नहीं आता। जब स्वाद लेता है तब गुनगुनाता नहीं। ब्र. प्रदीप पियूष हम भी गृहस्थी
राग-द्वेष
हर केंद्र की परिधि होती है। और हमारी ? परिधि वृत्ताकार होती है, किन्तु हम डर कर या रागवश एक दिशा के क्षेत्र को सिकोड़
बड़ा
अभिमान में-> मैं बड़ा – मैं बड़ा। मायाचारी में-> तू बड़ा – तू बड़ा। लक्ष्य……….-> बड़ा मानना। आर्यिका श्री पूर्णमति माता जी (9 दिसम्बर)
अपरिग्रह
खाली कमरा बड़ा दिखने लगता है, किसी (वस्तु) से टकराव नहीं। कमरा, कमरा बन जाता है। (ज्यादा सामान भरने से कमरे का महत्व समाप्त हो
मोह / अभिमान
प्रभु के रोज़ दर्शन करते हैं। उनसे जुड़ क्यों नहीं पाते जबकि संसारियों से तुरंत जुड़ जाते हैं। कारण ? मोह और अभिमान। मोह से
सुख
संसार में सुख बहुत हैं/ सहयोगी चीज़ें बहुत हैं, आपके सोकर उठने से पहले सूरज उठ आता है। संसार/ मार्गों को प्रकाशित कर देता है।
बालक / पालक
बालक अबोध होते हैं, उनमें स्वाभाविक दोष रहते हैं। पालक सबोध होते हैं, उनमें अस्वाभाविक दोष रहते हैं। बालकों की तीव्रतम कषाय (क्रोधादि) भी पालकों
विकास
गुण/ चारित्र का विकास बिल्ली की आवाज़ की तरह नहीं होना चाहिए… जो पहले तेज़ और बाद में मंद मंदतर होती चली जाती है। बल्कि
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