Category: डायरी
भक्ति
मेरा तो क्या है ! मैं तो पहले से हारा, तुझ से ही पूछेगा यह संसार सारा… डूब गयी क्यों नैया तेरे रहते खेवनहार !!
सम्मान / प्रतिष्ठा
सम्मान/ प्रतिष्ठा की चाहत उतनी ही करनी चाहिए, जितना देने का सामर्थ्य रखते हो। क्योंकि…. जो देते हो उससे ज्यादा वापिस कैसे और क्यों मिलेगा
समझ
ज़रूरी नहीं की हर व्यक्ति आपको समझ पाए, क्योंकि तराजू केवल वजन बता सकती है, क्वालिटी नहीं। (अनुपम चौधरी)
निस्वार्थी
व्यक्ति स्वार्थी है, यह पता चलता है नज़दीकियाँ बढ़ने के बाद; और नि:स्वार्थ है, यह पता चलता है उससे दूरियाँ बढ़ने के बाद। (सुरेश)
गुण / अवगुण
यदि बगीचे में गंदगी के ढेर ज्यादा हों तो वे खुशबूदार पौधों को पनपने नहीं देंगे और यदि 2-4 पनप भी गये तो उनकी खुशबू
भ्रम
आज चिड़िया का बच्चा खिड़की के कांच में अपनी छवि देख-देख कर चौंच मार रहा था। बार-बार भगाने पर भी नहीं भाग रहा था। उसके
ज्ञानी
कितनी भी मुसीबतें आयें, ज्ञानी कभी विचलित नहीं होते। सूरज का ताप कितना भी प्रचंड हो समुद्र कभी सूखता नहीं/ कम भी नहीं होता। (हितेष
सुख / दु:ख
हमें दु:ख वे ही दे सकते हैं जिनसे हमने सुख की चाहत की हो। (अनुपम चौधरी)
पति/पत्नि और धर्म
पति को वैदिक परम्परा में ‘पति-परमेश्वर’ कहते हैं। पर वह ‘परमेश्वर’ कैसे ? पत्नि जीवन काल में पति को धर्म में लगाये रखती है, उनके
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