Category: डायरी
अधिकार
संगठन, समाज और परिवार को “मालिक” नहीं, “माली” बन कर संभालिये! जो ख़्याल तो सब का रखता है, पर अधिकार किसी पर नहीं जताता! (अनुपम
ग़लत फ़हमी
इंसान सारी ज़िंदगी इस धोखे में रहता है कि… वह लोगों के लिए अहम है। लेकिन हकीकत यह होती है कि.. आपके होने ना होने
गुणवान
“यस्य कस्य प्रसूतोsपि, गुणवान पूजते नरः। धनुर्वंश-विशुद्धोपि, निर्गुणः किं करिष्यति।।” अर्थात- “मनुष्य कहीं भी, किसी भी कुल में पैदा हुआ हो, यदि वह गुणवान है,
अच्छा बनना/होना
“अच्छा बनना” और “अच्छा होने” में जमीन और आसमान का फ़र्क है। हम अच्छा बनने के लिये न जाने कितने अच्छे लोगों की ज़िंदगीयों से
अच्छाई / बुराई
जब किसी में भी कुछ अच्छा दिखाई नहीं देता हो…! तब समझ लेना कि… स्वयं में बुरा ढूँढने का समय आ गया है…!! मुनि श्री
गुरु / सम्रद्धता
भारत को जब सोने की चिड़िया कहा जाता तब ग्रीस से कुछ लोग कारण समझने आये। पता लगा – भारत का राजा अच्छा है। राजा
बुराई /अच्छाई
बुराई कैसी भी हो, उसका अन्तिम संस्कार अच्छाई ही करती है…! (अनुपम चौधरी)
साथ
सुख के लम्हें तक पहुंचते-पहुंचते ही हम उन लोगों से जुदा हो जाते हैं, जिनके साथ हमने दुःख झेलकर सुख़ का सपना देखा था। (सुरेश)
चिड़िया की तलाश
चिड़िया की तलाश मुनि क्षमा सागर जी को समर्पित एक चिड़िया अब खोजती है उसे जिसके कमरे में उसने अपने बच्चे बड़े किये थे। जब
अच्छा / बुरा
नीम की कड़वाहट बुरी नहीं, वह तो कितनी बीमारियों की दवा बनती है। हमको बुरी इसलिये लगती है क्योंकि हमें मीठा अच्छा लगता है। वाघले
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