Category: पहला कदम

म्लेच्छ

म्लेच्छादि खण्डों में क्षायोपशमिक सम्यग्दर्शन हो सकता है, सम्यग्दर्शन की उत्पत्ति नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 37)

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द्रव्य/ गुण/ पर्याय

द्रव्य तथा गुण पृथक नहीं। पर्याय गुण की भी जैसे केवल ज्ञान, पर्याय द्रव्य की भी जैसे सिद्ध भगवान। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान–

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क्रिया / भाव

पूजादि करते समय प्राय: हमारा उपयोग गलत जगह चला जाता है जैसे दूसरे ने क्रिया गलत कर दी(चावल की जगह बादाम चढ़ा दिये), उपयोग पूजा/

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अनेकांत

जो जीवन में अनेकांत पालन करते हैं वे आदर पाते हैं (क्योंकि उनसे अनबन होगी ही नहीं)। वैसे भी अनेकांत में छोटा “अ” है जो

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तीन मूर्तियाँ

एक सी तीन मूर्तियों की कीमत 1 हजार, 1 लाख, 1 करोड़| कारण ? 1. एक कान से धागा, दूसरे कान से बाहर → कर्णस्थ

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दोष

चल दोष → मंदिर हमने बनवाया है। मल दोष → शंकित/ भोगों की अकांक्षा। अगाढ़ दोष → शांति के लिये शांतिनाथ भगवान। मुनि श्री प्रणम्यसागर

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द्रव्य लिंग

कुछ लोग मुनियों को द्रव्यलिंगी कह कर उनके प्रति अश्रद्धा करते हैं। बस जिनवाणी (वह भी नये पंडितों द्वारा रचित) पर श्रद्धा अधिक करते हैं।

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कर्ता

मैं कर्ता हूँ – मन के स्तर पर विचारों का। वचन के स्तर पर शब्दों का। काय के स्तर पर कर्मों का। मुनि श्री मंगल

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देवियाँ

वैसे तो मुख्य 6 देवियाँ हैं, तो पंचकल्याणकों में 8 क्यों दिखायी जाती हैं ? 6 देवियों के अलावा रुचिकवर, कुंडलवर पर्वतों (ढ़ाई द्वीप के

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जीव

जीव कहने पर स्वयं की ओर ध्यान न जाना तत्व पर अश्रद्धान है। (खुद की सुरक्षा का ध्यान रखकर Drive करने वाले ही, सबकी रक्षा

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मंगल आशीष

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July 31, 2024

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