Category: पहला कदम

केवलज्ञान

केवलज्ञान में भविष्य का ज्ञान निश्चित है। पर हमारे लिए केवलज्ञान का स्वरूप ही जानना उपयोगी है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र – 1/29)

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अमृत

रस ऋद्धियों में मधुरादि सारे अच्छे रसों की ऋद्धियाँ तो आ गयीं फिर अमृत-ऋद्धि में कौन सा रस होगा ? योगेन्द्र अमृत-ऋद्धि में अलग Quality

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सम्यग्दर्शन

मिथ्यात्व के ऊपर श्रद्धान करने से भी सम्यग्दर्शन हो जाता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी (पाप को पाप मान लिया तो पुण्य पर श्रद्वान हो

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माया

माया-कषाय अंतर्मुहूर्त के लिये, माया-शल्य लम्बी अवधि के लिये। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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संस्थान-विचय

गुरु/ भगवान के आकार का चिंतन करना भी संस्थान-विचय होता है। शांतिपथ प्रदर्शक

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ऋद्धि

ऋद्धि 7 (सिद्धांत ग्रंथों में) भी 8 भी। (बुद्धि, क्रिया, विक्रिया, तप, बल, रस, अक्षीण, औषधि) क्रिया व विक्रिया को एक में लेने से 7

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मोक्षमार्ग

मोक्षमार्ग पर चलने से ज्यादा महत्वपूर्ण है उस पर बने रहना। आचार्य श्री विद्यासागर जी

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गुरु

गुरु वह जो शरीर को (आत्मा से) ज्यादा महत्व न दे। महावीर भगवान की दिव्यध्वनि 66 दिन “दलाल” के अभाव में नहीं खिरी। बड़े व्यापारों*

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तीर्थंकर / अवतार

तीर्थंकर… पुण्यवानों का कल्याण करने, अवतार… पापियों का नाश करने। कारण ? तीर्थंकर तो अहिंसा का प्रतिपादन करने आते हैं सो नाश कर ही नहीं

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सिद्ध भगवान

सिद्ध भगवानों का ज्ञान एक स्तर पर होता है। वे परम ज्ञानी हैं यानी जो ज्ञानी होगा उसके ज्ञान का लेवल एक होगा। यही केवलज्ञान

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मंगल आशीष

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