Category: पहला कदम

कृतज्ञता / मान

घोर गर्मी में बारिश से मौसम सुहाना हो गया। मुँह से निकला…. प्रभु ! धन्यवाद। प्रभु तो कर्ता नहीं है, फिर ? कृतज्ञता। फायदा ?

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सम्यग्दर्शन / स्त्री पर्याय

सम्यग्दर्शन प्राप्त करने से पहले यदि स्त्री पर्याय बांध ली हो तो वह संक्रमित होकर पुरुष पर्याय में परिवर्तित हो जाती है। श्री रत्नकरण्ड श्रावकाचार

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ज्योतिष विमान

तिर्यक लोक (मनुष्य लोक) के ज्योतिष विमान भ्रमण करते रहते हैं। अन्य द्वीप/ समुद्रों के आधे भ्रमण करते हैं, आधे अवस्थित। स्थिरता केवल तारों में

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आकाश

अवगाहन तो मुख्य रूप से आकाश में ही होता है। इसलिए आकाश को “विभु” कहा है (सबका आधार/ सर्वसामर्थ्यवान प्रभु)। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ

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परनिन्दा

निधत्ति, निकाचित कर्मबंध का एक और कारण है…. लोगों में वो दोष लगाना जो उनमें हैं ही नहीं। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी

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अवगाहन

आकाश की अवगाहन शक्ति से संख्यात, असंख्यात, अनंत प्रदेशी अनंत द्रव्य असंख्यात प्रदेशी लोकाकाश में रह रहे हैं। द्रव्य के अंदर अवगाहन/ संकोच-विस्तार स्वभाव भी

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मुनि शिवभूति जी

शिवभूति मुनि ज्ञानावरण कर्म के तीव्र उदय से अल्पज्ञानी थे। गुरु ने “मा-रुस मा-तुस” सूत्र का चिंतन करने को कहा। सूत्र का अर्थ था, “द्वेष

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आकाश में ऊर्जा

आकाश में, अणु से स्कंध तथा स्कंधों के टूटने से अणु बनने की क्रियाएं लगातार चलती रहती हैं। उससे Space में Energy बनी रहती है।

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चार गुण

सम्यग्दर्शन के लिये चार गुण (प्रशम, अनुकम्पा, संवेग, आस्तिक्य*)। पहले तीन गुण तो मिथ्यादृष्टि के भी हो सकते पर आस्तिक्य का संबंध सम्यग्दर्शन से ही

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शुद्ध जीवों में क्रिया

शुद्ध जीव 14वें गुणस्थान से सिद्धालय तक की 7 राजू की यात्रा करके हमेशा – हमेशा के लिये क्रिया रहित हो जाते हैं। मुनि श्री

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मंगल आशीष

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