Category: पहला कदम
ज्ञान / स्वाध्याय
आचार्य श्री विद्यासागर जी कहते हैं – ज्ञान/ स्वाध्याय का फल होना चाहिये → 1. हान → हानि – अशुभ की (त्याग) 2. उपादान →
तीर्थंकर
जब प्रद्युम्न कुमार का अपहरण हुआ था तब शायद नेमिनाथ भगवान का जन्म ही नहीं हुआ था। क्योंकि तीर्थंकर को परिवारजनों का वियोग नहीं होता
अरहंतों की क्षमता
जब भगवान के दानांतराय कर्म का क्षय पूरी तरह से हो जाता है, तो भी बहुत से जीवों को वे अपनी बात समझा क्यों नहीं
तीर्थंकर का मुनि साक्षात्कार
तीर्थंकरों का मुनियों से साक्षात्कार नहीं होता । क्योंकि होने पर तीर्थंकर वंदना नहीं करेंगे तब धर्म की कुप्रभावना होगी । स्व. पं. रतनलाल बैनाडा
नोकषाय
प्राय: छोटे को छोटा मानकर छोड़ देते हैं जैसे नोकषाय। 4 कषायों की चर्चा बहुत होती है। पर नोकषायों के कर्मफल भी बहुत कष्टप्रद होते
क्षायिक-दान
सिद्धों में क्षायिक-दान कैसे घटित करेंगे ? सिद्धों को ध्यान/ अनुभूति में अपने पास लाकर अभय का अनुभव करके। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तत्त्वार्थ सूत्र-
कर्मोदय का प्रभाव
कर्मोदय का प्रभाव व्यक्ति विशेष पर ही नहीं, आसपास के व्यक्तियों पर भी होता है। जैसे आदिनाथ भगवान के कर्मोदय से सौधर्म इंद आहार विधि
पुष्पवृष्टि
क्या केवलियों पर पुष्पवृष्टि भोगांतराय कर्म के क्षय से होती है ? सामान्य केवली के कल्याणकों पर भी वृष्टि होती है, पर कुछ समय के
ज्ञान / चारित्र
हिताहित का पूरा ज्ञान होने पर भी चारित्र अंगीकार क्यों नहीं करते ? योगेन्द्र चारित्र-मोहनी का उदय दो तीव्रता का → 1. तीव्र → जिसमें
लक्ष्य
हमारे जीवन का लक्ष्य हल्का होने का होना चाहिये। कर्मों से हल्का कैसे ? नित्य हिसाब लगायें/Balance Sheet बनायें, कितने कर्म कटे/ कितने बंधे। अधिक-अधिक
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