Category: पहला कदम
भेद-विज्ञान
पता कैसे चले कि भेद-विज्ञान हो गया है ? पीड़ा में पीड़ित न होकर, जब उसे कर्म फल मानने लगें तो समझो भेद विज्ञान हो
राग द्वेष
राग दसवें गुणस्थान तक चलता है जबकि द्वेष नौवें स्थान तक। कारण ? दोनों ही कषाय से होते हैं। क्रोध और मान* द्वेष रूप हैं,
मोक्षमार्ग
मोक्षमार्ग पर चलना नहीं, खड़े रहना/ बने रहना होता है (ज़्यादा महत्त्वपूर्ण होता है)। आचार्य श्री विद्यासागर जी
दूसरा/तीसरा गुणस्थान
पहले गुणस्थान में मिथ्यात्व के भाव, चौथे में सम्यक्त्व के। तो दूसरे/ तीसरे में ? मिथ्यात्व के संस्कार! मुनि श्री प्रमाणसागर जी
स्व-चतुष्टय
स्वयं का द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ही स्व-चतुष्टय है। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
जैन भूगोल
तिलोइपणत्ति के अनुसार एक प्राकृतिक आपदा (भोगभूमि से कर्मभूमि आते समय पृथ्वी एक योजन(योजन बराबर 2000 कोस) ऊपर उठ गई थी। उससे पृथ्वी गोल हो
भेद-विज्ञान
ज्ञानी को भेद-विज्ञान होता है, अज्ञानी को भेड़-विज्ञान (भेड़ चाल/ जो चलता आ रहा है/ सब कर रहे हैं, बिना विवेक के करते जाना)। (रेनू
व्रतादि
किसी भी कार्य की पूर्णता के लिए चार चीज़ें आवश्यक हैं… सुद्रव्य, सुक्षेत्र, सुकाल, सुभाव इष्टोपदेश(श्लोक 3) में व्रतादि भी बताए हैं। जब चारों चीज़ें
साधुसमाधि / वैय्यावृत्य करण
साधुसमाधि –> आपत्ति/ विघ्न दूर करके समाधि (ध्यान की एकाग्रता) में स्थित कराना। रत्नत्रय में व्यवधान दूर करने की भावना। अन्य समय में ऐसा व्यवधान
शब्द
1400-1500 साल पहले श्री राजवार्तिक में आचार्य श्री अकलंकदेव ने कहा था कि शब्द पौदगलिक/ मूर्तिक हैं, उन्हें संग्रह किया जा सकता है। आज वही
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