Category: पहला कदम

सामायिक

सामायिक – महाव्रती खड़गासन में, देशव्रती पद्मासन में, अविरती लेट कर भी, मिथ्यादृष्टि लेटकर करवटें बदलता रहता है, सामायिक करता ही नहीं। चिंतन

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मायाचारी

मायाचारी धोखा देने के लिये ही नहीं, अपनी रक्षा के लिये भी प्रयोग होती है। विशेष रूप से कमज़ोरों के द्वारा, इसीलिये स्त्रीयों में यह

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पुरातत्व

पुरातत्व (सिर्फ प्राचीनता) से ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है “पूरा तत्त्व” (प्रतिमा का संरक्षण)। (कुण्डलपुर मन्दिर निर्माण के अवसर पर) आचार्य श्री विद्यासागर जी

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ज्ञान

ज्ञान निष्क्रय गुण है। ज्ञानी द्रव्य (Matter) है। ज्ञान आकुलता देता है, इसलिये ज्ञानी नहीं ज्ञायक बनें। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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कर्म

1. निषिद्ध कर्म…संक्लेष भाव/ पाप कर्म। 2. काम कर्म…. संसारिक, अहंकार सहित। 3. विशुद्ध कर्म….धार्मिक/ सहज जैसे माँ संतान के लिये करतीं हैं, इनसे निर्जरा

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सम्यग्दर्शन

1 से 3 गुणस्थान में अधर्म क्योंकि सम्यग्दर्शन नहीं है। शील/ महाव्रत/ अखंड ब्रम्हचर्य, सब द्रव्य संयम, एक जन्म के; सम्यग्दर्शन (भावात्मक) जन्मजन्मांतरों का। ज्ञान

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आहारक

आहारक क्यों कहा ? आहार में ग्रहण (भोजन का), आहारक में ज्ञान का ग्रहण (शंका समाधान करके)। संदेह होते हुए भी निशंकित अंग कैसे बना

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रूपी / मूर्तिक

मूर्ति स्थिर होती है, सो जिसका आकार स्थिर हो वह मूर्तिक। आत्मा → अमूर्तिक (आकार बदलता रहता है, पर्यायों के अनुरूप); अरूपी (सूक्ष्मता तथा स्वभाव

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वेद-वैषम्य

द्रव्य-वेद तो पुण्य/ पाप से मिलता है। भाव-वेद नोकषायों/ वेदों में लिप्तता से, जिस वेद में रुचि, वही भाव-वेद मिलेगा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकाण्ड-

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योग / क्रिया

कई क्रियायें एक साथ दिखतीं हैं जैसे पूजा करते समय, पर योग एक समय पर एक ही होगा। क्रिया लम्बे समय तक की होती है,

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मंगल आशीष

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December 6, 2023

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