Category: पहला कदम
समवसरण व्यवस्था
आचार्य कुंदकुंद के अनुसार आर्यिकाओं को दीक्षा नहीं दी जाती। इसीलिये उन्हें श्राविकाओं के कोठे में बैठाया जाता है। देवियों को अलग-अलग कोठों में इसलिये
शुद्ध/अशुद्ध द्रव्य
जीव क्रियावान, पुद्गल भी क्रियावान क्योंकि उसमें अणु से स्कंध तथा स्कंध से अणु बनते रहते हैं। इसीलिये दोनों अशुद्ध। बाकी चारों द्रव्य क्रियावान नहीं
मनोवर्गणा
मनोवर्गणा द्रव्य-मन में उपादान कारण हैं। भाव-मन नोइंद्रियावरण के क्षयोपशम से उत्पन्न ज्ञान की परिणति है, जिससे स्मृति/ विचार क्षमता आती है। मुनि श्री प्रणम्यसागर
परिचय
मेरा/ हम सब का सही परिचय… स्व-चतुष्टय है। जो इस पर विश्वास करते हैं वे सम्यग्दृष्टि होते हैं। हमारी कार्मण वर्गणायें भी अपने-अपने चतुष्टय में
धर्माधर्मयोः कृत्स्ने
धर्माधर्मयोः कृत्स्ने… धर्म अधर्म एक-एक होते हुए भी पूरे लोकाकाश में पूर्ण रूप से व्याप्त हैं, जैसे तिल में तेल। अन्य द्रव्यों का ऐसा नहीं
अस्तित्व / सहकारिता
सब द्रव्य साथ-साथ रहकर भी अपने-अपने स्वभाव में रहते हैं। एक दूसरे के स्वभाव को छेड़ते नहीं। इसीलिये कहा कि एक द्रव्य दूसरे द्रव्य का
तत्त्वार्थ सूत्र
तत्त्वार्थ सूत्र पूर्ण रूप से सिद्धांत ग्रंथ नहीं है क्योंकि उसमें दो अध्याय चरणानुयोग के भी हैं। इसलिये इसे अष्टमी चौदस को पढ़ा जा सकता
तीर्थंकर भारत में
तीर्थंकर भारत में ही क्यों ? तीर्थंकर पुण्यात्माओं का कल्याण करने को बनते हैं (अपने कल्याण के साथ-साथ), अवतारवाद से भिन्न, जो पापियों का नाश
सम्यग्दर्शन / मिथ्यादर्शन
निरपेक्ष समझ –> सम्यग्दर्शन। सापेक्ष समझ –> मिथ्यादर्शन। इंद्रिय सापेक्ष जैसे शिखर जी की वंदना में पहले मोटे कपड़े प्रियकर, बाद में बोझ। यानी सुख
अभ्यास
कराटे में 1000 Action खतरनाक नहीं, वह एक खतरनाक होता है जिसका अभ्यास 1000 बार किया गया हो। जैसे भरत चक्रवती गृहस्थ जीवन में लगातार
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