Category: पहला कदम
कषाय / अधर्म
जैसे कषायें अपना प्रभाव योगों के माध्यम से देतीं हैं (लेश्या बनकर), ऐसे ही अधर्म का प्रभाव/ पहचान क्रियाओं के माध्यम से होती है। चिंतन
प्रतिक्रमण
प्रति = स्वयं, क्रमण = क्रम में लौटना। निर्यापक मुनि श्री सुधासागर जी
ज्ञानेंद्रिय
इंद्रियों का उपयोग ज्ञान की अपेक्षा से, इसलिये इंद्रियों को ज्ञानेंद्रिय कहा है। अन्य मतों में 5 इंद्रियों की जगह 10 इंद्रियाँ मानी हैं। 5
मोक्ष
मोक्ष शब्द “मच्” धातु से बना है, जिसका अर्थ होता है – “मुक्ति”। दूसरे शब्दों में कल्पना ही बंधन है, उससे छूटना मोक्ष। शान्तिपथ प्रदर्शक
नियम की बाध्यता
श्री लाजपतराय जैन थे। एक गुरु ने उनको कुछ नियम लेने को कहा। उनके मना करने पर समाज वालों ने बहुत आलोचना की। परेशान होकर
रत्नत्रय
अमृतधारा में कपूर, अजवाइन का फूल तथा पिपरमेण्ट बराबर मात्रा में मिलाया जाता है। रत्नत्रय में सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यकचारित्र का महत्व भी बराबर होता
अंत की भावना
अंत समय की गवाही “कलम बद्ध” होती है। उसकी प्रमाणिकता को Challenge नहीं किया जाता है। ऐसे ही अंत समय के परिणाम “कर्म बद्ध” होते
आयुबंध
अपकर्ष कालों में सबसे ज्यादा जीव एक बार आयुबंध करते हैं। उनसे असंख्यात गुणे कम 2 बार। क्रमश: संख्यात-2 गुणे कम-कम होते, 8 बार आयुबंध
देशव्रती की मांग
देशव्रती भगवान/ गुरु से शरीर/ परिवार चलाने के लिये मांग सकता है (व्यवस्था चलाने के लिये), पर भोग-विलास के लिये नहीं। मुनि श्री सुधासागर जी
ध्यान
सिद्ध/अरहंत का ध्यान कैसे करें ? उनके द्रव्य/ पर्याय/ गुणों को याद करके जैसे अरहंत को अशोकवृक्ष, सिंहासन आदि को ध्यान में लाकर। मुनि श्री
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