Category: पहला कदम
भक्ति
भरत चक्रवर्ती को अवधिज्ञान भगवान की भक्ति के बाद प्राप्त हुआ था। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (जीवकांड- गाथा 371)
चरणों में कमल
भगवान के विहार के समय चरणों में कमल रचना चारों ओर क्यों ? शायद इसलिये कि भगवान किसी भी दिशा में विहार कर सकते हैं।
मूर्ति
कृत्रिम मूर्ति को अकृत्रिम की तरह रंग ऊपर से लगाना परिग्रह में आयेगा जैसे मुनियों के बालों के काले रंग में दोष नहीं, ख़िज़ाब लगाना
सम्यग्दृष्टि / शुभ क्रिया
हर शुभ क्रिया करने वाला जरूरी नहीं कि वह सम्यग्दृष्टि ही हो, पर सम्यग्दृष्टि शुभ क्रिया ही करेगा। चिंतन
तीर्थंकरों के अवधिज्ञान
तीर्थंकरों के कौनसा अवधिज्ञान ? योगेन्द्र संयम लेते ही तीर्थंकरों के सर्वावधिज्ञान हो जाता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
काललब्धि
मंदिर जाने के लिये भजन अलार्म के रूप में बजता था। संक्लेष मिटाने तथा पूरा भजन सुनने के लिये, तैयार होने पर बजाने लगा। ये
चार पुरुषार्थ
अर्थ और काम पुरुषार्थ जब मोक्ष के हेतु किया जाता है, वही धर्म पुरुषार्थ बन जाता है। मुनि श्री सुधासागर जी
सूतक दाढ़ी का
दाढ़ी बनाने का सूतक 6 घंटे का लिखा तो है पर जब बाज़ार में बनवायी जाये तब, खुद तो सुबह और भी गंदे काम करते
काल का प्रभाव
चौथे काल के भावलिंगी मुनियों की कर्म निर्जरा, पंचम काल के मुनियों से कम होती है क्योंकि उन्हें तो भगवान बनने की संभावना थी, वे
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