Category: पहला कदम

स्वभाव / विभाव

जीव का स्वभाव तो दया है तो हिंसक पशुओं में कैसे घटित करेंगे ? पर्यायगत विभाव को स्वभाव कहने लगे हैं। (मनुष्य पर्याय से अहिंसक

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विभाव / स्वभाव

विभाव – जिसमें चाह कर भी लगातार/ बहुत देर नहीं रह सकते, तात्कालिक। स्वभाव – न चाहते हुए भी उस स्थिति में वापस आना पड़े,

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आचार्य उमास्वामी

तत्त्वार्थ सूत्र के रचयिता आचार्य उमास्वामी के नाम में “उमा” उनकी माँ तथा “स्वामी” उनके पिता का नाम है। माता-पिता को सम्मान देने का यह

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अनंतता

अनंत तो बहुत स्थानों पर प्रयोग होता है पर उनमें भी छोटा-बड़ा घटित होता है। जैसे जीव अनंत, पर पुद्गल अनंतानंत, काल उससे भी बड़ा

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सम्यग्दर्शन

छह द्रव्यों पर श्रद्धा से सम्यग्दर्शन कैसे ? 6 द्रव्यों में अरूपी भी, उस पर श्रद्धा यानी केवलज्ञान/ ज्ञानी पर श्रद्धा। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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परिणाम

परिणाम दो प्रकार के –> अनादि परिणाम → अनादि से उसी रूप चल रहे हैं जैसे सुमेरु पर्वत। ये पकड़ में नहीं आते। सादि परिणाम

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मूर्तिमान-दर्शन

यदि “जन्म-जरा-मृत्यु-विनाशनाय” अर्घ्य पढ़ते समय मूर्ति में मूर्तिमान के दर्शन हो जायें, तो अकाल मरण टल जाता है। ऐसे ही “संसार-ताप-विनाशनाय” अर्घ्य के समय दर्शन

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धनतेरस

1) धनतेरस…. बाह्य-चेतना का विषय.. मिथ्यादृष्टि। 2) धन्यतेरस… अंतरंग का विषय…… सम्यग्दृष्टि। 3) ध्यानतेरस… व्रती लोगों का विषय जो परमात्मा बनने की राह पर हैं..

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नय

द्रव्यार्थिक नय –> हर द्रव्य अपने-अपने स्वभाव में है। यानी द्रव्य के स्वभाव को देखना जैसे सिद्ध भगवान अपनी अवगाहना में (यहाँ पर्यायार्थिक नय को

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मंगल आशीष

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