Category: पहला कदम

अनुयोग

चरणानुयोग संसार से भय उत्पन्न करता है। द्रव्यानुयोग अभय। मुनि श्री सुधासागर जी

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पल्य

पल्य का असंख्यातवाँ भाग = असंख्यात वर्ष। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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सोलहकारण भावना

प्रत्येक भावना अविनाभावी हैं (जैसे Cube की 6 Sides या Globe में दिशायें)। श्री चारित्रसार एक-एक भावना से भी तीर्थंकर प्रकृति बंध सकती है। श्री

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निद्यत्ति / निकाचित

अपूर्वकरण में निद्यत्ति/निकाचित पने की व्युच्छित्ति….सिद्धांत है। देवदर्शन से व्युच्छित्ति….भक्ति की अपेक्षा। मुनि श्री सुधासागर जी

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जीव / पुद्गल

4 द्रव्य तो उदासीन हैं, जीव और पुद्गल में युद्ध चलता रहता है। चूंकि संसार काजल कोठरी है सो कालिख लगती ही है और कालिख

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तीसरे गुणस्थान से गति

तीसरे गुणस्थान से गति करके पहले अथवा चौथे गुणस्थान में ही जाते हैं; 5, 6, या 7वें गुणस्थान में नहीं जाते। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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आहार

बिना आहार के आदिनाथ भगवान करीब 13 माह रहे, बाह्य कारण….वज्रवृषभ नाराच संहनन, अंतरंग संकल्प। सामान्यत: विहार तथा आत्मध्यान के लिये आहार आवश्यक होता है

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क्षयोपशम सम्यग्दर्शन

क्षयोपशम सम्यग्दर्शन में दोष…. 1. चल दोष….चलायमान/ जल में प्रतिबिम्ब साफ नहीं दिखता जैसे ये प्रतिमा मैंने बनवायी। 2. मलिन….आकांक्षा/ मिथ्यादृष्टि की प्रशंसा। 3. अगाढ़….

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आगम-ज्ञान

महावीर भगवान के बाद 3 केवली…. गौतमस्वामी, सुधर्मास्वामी व जम्बूस्वामी, इनका 62 साल का काल रहा। फिर 5 श्रुतकेवली…. विश्व, नन्दीमित्र, अपराजित, गोवर्धन तथा भद्रबाहू,

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अपराधी

अपराधी… पर्याय होती है, निरपराधी…. त्रिकाली द्रव्य। (मनीष मोदी)

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मंगल आशीष

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