Category: पहला कदम
स्वाध्याय
एक आचार्य-प्रणीत ग्रंथ का स्वाध्याय हमेशा चलना चाहिये, क्योंकि इस प्रकार के ग्रंथों से वैराग्य और संवेग बना रहता है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सम्यग्दृष्टि
1. जो अपनी उम्र संयम लेने के दिन से गिने। 2. स्व-आश्रित होकर वह काम करे जो पराश्रित होकर करना पड़ा था जैसे कोरोना के
परिषह-जय
परिषह-जय Extra Course है। मूल Course तो 28 मूलगुणों का पालन है। परिषह इतना ही सहें जिससे शारीरिक/मानसिक संतुलन ना बिगडे। परिषह-जय तो उत्कृष्ट की
सम्यग्दर्शन के अंग
सम्यग्दर्शन के 8 अंगों में से पहले 4 व्यक्तिगत हैं/स्वयं के लिये – निशंकित, निकांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढ़दृष्टि। इनके प्रतीक हैं – दोनों पैर और दोनों
करणानुयोग
“करण” के दो अर्थ – 1. परिणाम 2. गणित अनुयोग के प्रसंग में गणित ही लिया गया है क्योंकी आचार्य श्री समंतभद्र स्वामी ने कहा
नज़दीकियाँ/दूरियाँ
पास में बैठे व्यक्त्ति से भी यदि मोबाइल से सम्पर्क करना हो तो सिग्नल दूर टॉवर/सैटेलाइट पर जाकर वापस आते हैं। सर्वार्थसिद्धि (जो मोक्ष के
वीर्यांतराय
इन्द्रियों के बढ़ने से वीर्यांतराय का क्षयोपशम तथा आत्मा/ शरीर की शक्त्ति बढ़ती है। वीर्यांतराय का क्षयोपशम बढ़ने से ज्ञान बढ़ता है तथा ज्ञान बढ़ने
श्वासोच्छवास
यह प्रक्रिया बिना नाक वालों में कैसे होती है ? श्वासोच्छवास तो एक इन्द्रिय तक के जीवों में भी बतायी है ? बिना फेंफड़े वाले
सम्यग्दृष्टि / मिथ्यादृष्टि
संसारी/ मिथ्यादृष्टि मोक्षमार्ग में दु:ख मानता है (संसार में सुख की खोज में लगा रहता है) इसलिये दु:खी रहता है। साधु/ सम्यग्दृष्टि मोक्षमार्ग में सुख
सम्यग्दृष्टि
सम्यग्दृष्टि धर्म में झूठ/बेईमानी नहीं कर सकता, संसार में विपत्ति में कर सकता है। भगवान/गुरु पर गुस्सा नहीं कर सकता, संसार में रक्षा करने संकल्पी
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