Category: पहला कदम
मोह / अज्ञान
मोह से मैं ज्ञानी हूँ – प्रज्ञा भाव, मैं अज्ञानी हूँ – अज्ञान भाव, ये भाव मिथ्यात्व से नहीं, क्योंकि संयमियों भी पाये जाते हैं।
सुदर्शन महाराज
शांतिधारा में “सुदर्शन महाराज” नाम आता है। सुदर्शन यानि सु-दर्शन = सम्यग्दर्शन या जिन-दर्शन; महाराज = महान राज करने वाला। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
प्रथमानुयोग
प्रथमानुयोग भले ही कहानियों के माध्यम से बहुत राउंड लेकर तत्त्व पर आता है। परन्तु आचार्य समंतभद्र स्वामी ने इसे – बोधि समाधि का निदान,
शय्या परिषह जय
एक आसन/करवट/दंडाकार या धनुषाकार, न बने तो उठकर आत्मध्यान करना। कठोर आसन पर बैठना/सोना। सुख आनंद नहीं लेना।
बारह भावना
बारह भावना, बिना फल की इच्छा से, भाव सहित भाने से लौकांतिक देव तक बन सकते हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
आयु/गति बंध
आयु-बंध हो जाने के बाद, गति-बंध भी आयु-बंध के अनुसार ही होने लगता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
निर्जरा
निर्जरा में मुख्य भूमिका आशय की। 1. निर्जरा चाहने वाला अंतरमुखी होगा 2. सम्यग्दर्शन के भाव से भी 3. इच्छा निरोध: तप: मुनि श्री प्रणम्यसागर
दान / हान / पान
लघु बनकर नहीं, गुरु बनकर ही धर्म का दान दिया जाता है। गुरु बनकर नहीं, लघु बनकर ही कर्म का हान किया जाता है। न
अंतराय
कर्म का तीव्र उदय आने पर उसका बुद्धिपूर्वक त्याग कर देना चाहिये, अंतराय मंद पड़ने लगता है। इसे कहते हैं – “कर्म फल सन्यास” इसे
दोष निवारण
चार आना दोष पश्चाताप से नष्ट हो जाता है, चार आना गुरु को बताने से, चार आना प्रायश्चित लेने से, शेष बचा हुआ चार आना
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