Category: डायरी
सत्य / असत्य
सत्य असत्य दोनों नहाने गये। असत्य ने सत्य के कपड़े पहन लिये। वही कपड़े पहने आज भी घूम रहा है। सत्य जब तक जूते पहन
एक ही देवता
एक विधवा महिला मंदिर में फूल तथा Waste सब भगवान को समर्पित करतीं थीं। कारण ? “सर्वस्व समर्पयामि”। जब हमारा भगवान एक ही है तो
सोच
नकारात्मक ….काफ़ी अकेला हूँ। सकारात्मक …अकेला काफ़ी हूँ। (एकता-पुणे)
श्रमण / श्रावक
श्रमण … मैं ही मैं हूँ (क्योंकि स्व में प्रतिष्ठित), श्रावक …तू ही तू है* ( क्योंकि गुरु/ भगवान की भक्ति की प्रधानता)। ब्र. डॉ.
दर्शन
दर्शन की पैदाइश* से दुःख। दर्शन-शुद्धि सो जीवन शुद्धि। ब्र. डॉ. नीलेश भैया * देखने के भाव
संघर्ष / संस्कार
यदि बड़े होकर संस्कारित नहीं रहे तो बदनाम कौन होगा ? हमारी माँ।
अहिंसा
बलि के पक्ष में कुतर्क… उस जानवर को तो मरना ही था। यहाँ मेरे हाथों मर गया ! मारने में तुम क्यों निमित्त बनो ?
दिल / दिमाग
सर्विस करते समय दिल और दिमाग में कई बार संघर्ष होता है क्या करें ? रेणु जैन-कुलपति प्रशासनिक निर्णय लेते समय दिमाग से काम करें,
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