Category: पहला कदम
ज्ञान / अनुभूति
ज्ञान तो ख़ुद भी पढ़कर ले सकते हो पर अनुभूति तभी जब उनसे ज्ञान लिया हो जिन्होंने उस ज्ञान की अनभूति की हो। मुनि श्री
ध्यान / चिंतन
ध्यान तदरूप जैसे पिंडस्थ ध्यान में मेरी आत्मा सिद्ध रूप। वर्तमान पर्याय का ध्यान नहीं होता। मुनि भी साधु परमेष्ठी के ध्यान में, अपने से
भगवान के मस्तिष्क
भगवान के मस्तिष्क नहीं होता। दिमाग तो शरीराश्रित होता है, सिद्ध के शरीर नहीं (अरिहंत के Inactive)। मस्तिष्क नहीं सो राग द्वेष नहीं। मुनि श्री
निमित्त-नैमित्तिक संबंध
नरक में शुभक्रिया करना भी चाहो तो भी अशुभ हो जाती है। शराब का नशा पुलिस की पिटाई से उतर जाता है। आयुर्वेद में उत्तर/
सर्वावधि / मन:पर्यय
जब सर्वावधिज्ञान एक परमाणु तक को जानता है, तो मन:पर्यय ज्ञानी उसका अनंतवा भाग कैसे जानेगा ? आशय द्रव्य से नहीं, पर्याय से लेना। पर्याय
मन
नोइंद्रिय/ अंगोपांग नामकर्म के उदय से मन बनता है। हृदय स्थल पर होने के कारण ही मन को हृदय और हृदय को मन कहने लगते
मांगना
सम्यग्दृष्टि कुछ मांगे तो क्या वह मिथ्यादृष्टि हो जायेगा ? भक्ति में मांगना सभ्यता है। सभ्यता व्यवहार है, संसार चलाने के लिये आवश्यक है। यदि
शरीरों की स्थिति
शरीरों की उत्कृष्ट स्थिति –> 1. औदारिक – 3 पल्य (भोग भूमि) 2. वैक्रियक – 33 सागर (देव व नारकी) 3. आहारक – अंतर्मुहूर्त 4.
संवेदनशीलता
आस्तिक्य भाव को जगाने वाले सफलतम साधु थे मुनि श्री क्षमासागर जी। जिन-जिन के अंदर उन्होंने ये भाव जाग्रत किया, वे आजतक सुसुप्त नहीं हुए
सम्यग्दर्शन के अंग
सम्यग्दर्शन के 8 अंगों में से निर्विचिकित्सा, स्थितिकरण, उपगूहन, वात्सल्य और प्रभावना मुख्यतः मुनियों से जुड़े हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति.भा. गाथा- 51)
Recent Comments