Category: पहला कदम

ज्ञान / कर्म धारा

ज्ञान धारा → अजायबघर में रखी वस्तुओं के प्रति दृष्टिकोण। कर्म धारा → घर/ पुत्रादि के प्रति, रागद्वेष सहित कर्ताबुद्धि। दोनों धारायें साथ-साथ नहीं चल

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मंत्रों का प्रभाव

शब्द पुद्गल हैं, कर्म भी। मंत्रों के उच्चारण से दवा की तरह कर्मों की Chemistry भी Change हो जाती है। श्री लालमणी भाई

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सम्यग्दर्शन की पात्रता

7वें नरक तक में सम्यग्दर्शन पाने की पात्रता है, पर छठे काल में नहीं, ऐसा क्यों ? शायद नियति कहती है… मनुष्य होकर भी ऐसे

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स्त्री-कथा

स्त्री-कथा को बुरा माना पर भगवान की माँ की कथा? विकारी पर्याय को बुरा कहा, माँ/ बहन की कथा को बुरा नहीं कहा। माँ का

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पुरुषार्थ

मुनिपद भारी पुरुषार्थ का फल होता है। पर कुछ मुनि बनने के बाद भी कषायों को क्यों नहीं नियंत्रित कर पाते ? पुरुषार्थ दो प्रकार

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सासादन/ सम्यक्-मिथ्यात्व

“सासादन” के साथ “सम्यग्दर्शन” लगाते हैं(सासादन-सम्यग्दर्शन) क्योंकि जीव सम्यग्दर्शन से गिरकर आया है। सम्यक्-मिथ्यात्व में दोनों ओर (सम्यक्त्व तथा मिथ्यात्व) से आता है इसलिये इसका

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सम्यग्दर्शन / लब्धि

5 लब्धियाँ प्रथमोपशम के समय, क्षयोपशम सम्यग्दर्शन के समय नहीं, सिर्फ सम्यग्दर्शन के भाव तथा सम्यक् प्रकृति का उदय। क्षायिक सम्यग्दर्शन में भी लब्धि नहीं,

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गर्भज

प्रकार → 1. जरायुज → जरायु + ज (उत्पन्न) जरायु = झिल्ली/ आवरण (मांस रक्त का)। मनुष्य गाय आदि के। 2. अंडज → अंड +

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आस्रव

चारों ओर से कर्मों का धीरे-धीरे रिसना। इसलिये पता नहीं लगता/ हम रोकने का प्रयास नहीं करते। दूसरा कारण है सूक्ष्मता (कर्म वर्गणाओं की)। शांतिपथ

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मंगल आशीष

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