Category: पहला कदम
विरक्त्ति
विरक्त्ति लाने के उपाय – 1. बाह्य – जीवों की रक्षा करके 2. अंतरंग – कषायों को कम करके बाह्य पहले, उसमें भी पंचेन्द्रिय की,
अनर्थदंड
पैर हिलाते रहने में नुकसान क्या है ? क्रियाओं से आत्मा में स्पंदन/कर्मबंध होता है। अनावश्यक क्रियाओं को रोककर अनर्थदंड से बच सकते हैं। चिंतन
अध्यापन
पढ़ाने का उद्देश्य विद्वता प्रदर्शन नहीं, अपितु सामने वाले में तत्त्व के प्रति समर्पण भाव लाना है। आचार्य श्री विद्यासागर जी
सम्यग्दृष्टि
आर्यिका श्री विशालमति माताजी – गुरुदेव ! इतने बड़े संघ के नायक होकर भी इतने निस्पृही कैसे ? आचार्य श्री विद्यासागर जी – मैं संघ
अचित्त / हिंसा
अचित्त करने में एकेन्द्रियों की हिंसा तो होती है पर एकेन्द्रिय ज्यादा देर तक बने रहें तो त्रस जीवों की उत्पत्ति में भी कारण बनते
परिग्रह
समाधि के लिये पहले समधी बनना पड़ता है, परिग्रह-त्याग प्रतिमा के लिये “समाधी” शब्द आया है। परिग्रह को आप नहीं रखते, परिग्रह आपको रखता है/आपको
ध्यान
वीतरागी के ध्यान से राग समाप्त होता है । पंचपरमेष्ठियों के ध्यान से पंचेन्द्रिय-विषयों पर काबू होता है । कौन क्या कर रहा है इस
प्रेम / घृणा
क्या प्रेम व घृणा पौद्गलिक हैं ? (क्षायोपशमिक) ज्ञान सहित पौद्गलिक वर्गणायें हैं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
अवर्णवाद
“मारीच” वह…. जो भगवान ने कहा, वह नहीं कहे। यही अवर्णवाद है। “महावीर” वह…. जो भगवान (पूर्व तीर्थंकरों) ने कहा, वही कहें। मुनि श्री प्रणम्यसागर
अनुप्रेक्षा
सुने हुये अर्थ का श्रुत के अनुसार चिंतन करना अनुप्रेक्षा है। बार बार विचार करने से विषय अच्छे ढ़ंग से खुल जाता है। बहुत नहीं,
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