Category: पहला कदम
आसन-सिद्धि
ध्यान-साधना वही कर सकता है जिसे आसन-सिद्धि हो। मैं कौन हूँ ! कौन से आसन पर बैठा हूँ, इसका भी ज्ञान ना हो यही आसन-सिद्धि
आत्मा
जिस प्रकार पहले कपड़े धोते हैं, नील देते हैं, फिर टिनोपाल, फिर प्रेस करते हैं, तब कपड़े चमकते हैं । उसी प्रकार पहले आरंभ-परिग्रह को
मूंगफली
जमीन के ऊपर पैदा ना हो कर भी, भक्ष क्यों ? 1. जमीन की ऊपरी पर्त पर होती है, आलू आदि की तरह नहीं ।
श्वास
एक श्वास में 8+10 बार में जो श्वास कहा है वह हमारी एक सांस (लेना) नहीं बल्कि “नाड़ी” (Pulse) है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
स्वाध्याय
द्रव्य-संग्रह, रत्नकरंड श्रावकाचार तथा तत्त्वार्थ-सूत्र; ये तीन हो जाते हैं तो लगभग आप “शास्त्री” बन जाते हैं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
वीर्य
वीर्य = शक्त्ति। अजीव में भी बहुत शक्त्ति होती है जैसे संहनन, उत्कृष्ट सातवें नरक या मोक्ष तक ले जा सकता है। मुनि श्री प्रमाणसागर
वाचना
शिष्यों को पढ़ाने का नाम वाचना है। वाचना का अर्थ होता है – प्रदान करना। पर वाचना का अर्थ आजकल “वाचन” हो गया है/Self Study
भाव
एस.एल.जैन जी के दीक्षा वाले दिन, एक 101 वर्ष की दादी आयीं और दीक्षा ग्रहण के भाव दर्शाये। दीक्षा लेने के चौथे दिन समाधिमरण हो
वेदक सम्यक्त्व
सम्यक् प्रकृति के उदय को अनुभवन* करने वाले जीव का तत्वार्थ श्रद्धान, वेदक-सम्यक्त्व होता है। इसी का नाम क्षयोपशम-सम्यग्दर्शन भी है। श्री धवला जी –
कर्म
कर्म अपना फल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार तो देते ही हैं पर अनुकूल/प्रतिकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव भी देते हैं। सुख-दु:ख
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