Category: पहला कदम
कर्म
कर्म अपना फल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के अनुसार तो देते ही हैं पर अनुकूल/प्रतिकूल द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव भी देते हैं। सुख-दु:ख
उपादान / निमित्त
उपादान से सम्यग्दर्शन नहीं, निमित्त से प्रथमोपशम सम्यग्दर्शन होता है। आत्मा की शक्तियां बैंक लॉकर में रखी सी होती हैं, उन तक पहुँचने के लिये
लक्ष्य
गोमटेश स्तुति के आखिर में लिखा – “विद्यासागर कब बनूँ…” ये नाम तो गुरु ने दिया था पर विद्या का सागर/ अथाह-ज्ञानी बनने का लक्ष्य
धर्म का फल
धर्म के फल रूप कमल, तीन को मिले…. 1. तीर्थंकर को मुख्य रूप से पूर्व भवों के धर्म का फल, उत्कृष्ट शुभ कर्मों से। 2.
निश्चय
पूर्ण को निश्चय कहते हैं, चिंतन/चिंता समाप्त, जब विश्राम मांगने लगे – शुद्धोपयोग/ यथाख्यात चारित्र होने वाला है। मुनि श्री सुधासागर जी
नरकों में सम्यग्दर्शन
नरकों में सम्यग्दर्शन का एक विशेष कारण – “पीड़ा वेदन” भी है । पर पीड़ा वेदन तो मनुष्य/तिर्यंचों को भी होता है, हमारे लिये यह
आत्महित
आत्महित के लिये प्रमाद यानि बहाने छोड़ने होंगे। कोई भी सांसारिक सम्बंध, आत्महित से बढ़कर नहीं होता। पकड़ दोनों हाथों के टाइट रहने से बनी
सीमायें
सज़ा/फल मिलने की सीमायें…. अविरत सम्यग्दृष्टि 6 माह, देशव्रती की 15 दिन, महाव्रती की अंतरमुहूर्त, ताकि इतने समय में अपनी भूल को प्रायश्चित करके सुधार
भावना
बारह-भावना भाने के लिये तीन भावना भायें – 1. सम…षटकाय जीवों के प्रति 2. निर्मम…मम भाव हटाना 3. निशल्य इनको भाने से – 1.संवेग 2.वैराग्य
निश्चय नय
वस्तु के प्रति पवित्रता का भाव निश्चय-नय से आता है। आज जो चींटी है कल को भगवान बनने की क्षमता रखती है, आज में कल
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