Category: पहला कदम

आ. श्री शांतिसागर जी

आचार्य श्री शांतिसागर जी आचार्य श्री ने जब दक्षिण से उत्तर की ओर विहार किया, तो उनसे अनुरोध किया गया कि उत्तर में परिस्थितियाँ अनुकूल

Read More »

अदृश्य

कर्म व आत्मा दोनों अदृश्य। कर्म को ही विधि कहा; सारा खेल कर्म का ही। इसीलिये कहते हैं- “विधि का विधान”। हाइकू: “अदृश्य विधि ही

Read More »

संयम

तुम्हारा संसार की ओर देखना असंयम; संसार का तुम्हारी ओर देखना संयम है। मुनि श्री सुधासागर जी

Read More »

भोजन

खाना – खाया जाता है – तामसिक – साधारणजन करते हैं। भोजन – किया जाता है – राजसिक – रुचि के अनुरूप – संयमी। आहार

Read More »

जिनवाणी

जिनवाणी को भी श्रुतज्ञान कहते हैं हालाँकि वे अक्षर हैं, कारण को कार्यरूप श्रुतज्ञान कहा है। हालाँकि श्रुतज्ञान तो ज्ञानावरण के क्षयोपशम से होता है।

Read More »

पूजक / पूज्य

पूजक, पूज्य की पूजादि करके ख़ुद फलीभूत होते हैं, पर जब पूज्य पूजक के निमित्त से फलीभूत हों तब पूजक का पुण्य अक्षय रहेगा। पर

Read More »

निमित्त

जीवन-उत्थान के लिये दो निमित्त चाहिये – 1. कुलाचार चलाने के लिये – माता/पिता: बुराइयाँ, जो गुरु से दूर करती हों, छुड़ाने के लिये। ये

Read More »

प्रामाणिक ज्ञान

मति/श्रुत ज्ञान तो परोक्ष-ज्ञान है तो प्रामाणिक कैसे ? क्योंकि सम्यग्ज्ञान, केवल-ज्ञान पर आधारित होता है, इसलिये ये भी प्रामाणिक है। सिर्फ केवलज्ञान को प्रामाणिक

Read More »

आसन्न भव्य

आसन्न भव्य वह… जो पुण्य से वैसे ही डरता है जैसे पाप से। वचन/काय से पाप नहीं करता फिर भी अपने को पापी कहता है।

Read More »

भाग्य / पुरुषार्थ

आदिनाथ भगवान के आंगन में कल्पवृक्ष बाकी थे, पर उन्होंने तीर्थंकर-राहत-कोष से किसी को कुछ नहीं दिया बल्कि षट-कर्म सिखाये। देव भाग्य भरोसे, 12 योजन

Read More »

मंगल आशीष

Archives

Archives
Recent Comments

January 21, 2022

January 2025
M T W T F S S
 12345
6789101112
13141516171819
20212223242526
2728293031