Category: पहला कदम

श्रमण

श्रमण… शरीर की अपेक्षा वस्तु हैं, श्रमणता की अपेक्षा तत्त्व, जीव की अपेक्षा पदार्थ। कुछ श्रमण इतने ऊँचे उठ जाते हैं कि श्रमण-संस्कृति का निर्माण

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नियम का फल

छोटा सा बीज, फसल में सैकड़ों/हजारों बीज (फल रूप) जैसे चांडाल ने सिर्फ चौदस को हिंसा न करने का नियम लिया। फल ? देवों ने

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शास्त्राध्ययन

श्री ज्ञानार्णव ग्रंथानुसार – अक्षर-ज्योति से ज्ञान-ज्योति जलती है। (सम्यग्)दर्शन के लिये शास्त्राध्ययन आवश्यक है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी

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देशना

सम्यग्दर्शन पाँच लब्धियों से, जिसमें तीसरे नम्बर पर देशना लब्धि है यानि उपदेश सुनना जरूरी । लब्धिसार ग्रंथ में लिखा है कि उपदेश सुनना या

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ज्ञान

सम्यक्-ज्ञान ही प्रमाण होते हैं । मति, श्रुत, अवधि. मन:पर्यय, केवल-ज्ञान श्रुतानुसार (शास्त्रानुसार) ही होते हैं । सुश्रुत और कुश्रुत दोनों ज्ञान शब्द रूप हैं

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पुरुषार्थ

द्वीपायन मुनि को भगवान ने बताया फिर भी उन्होंने पुरुषार्थ नहीं छोड़ा । 12 साल मुनि पद का आनंद लिया, शराबी कुछ समय के आनंद

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ध्यान

ध्यान में ना तो णमोकार, ना ही भगवान का नाम लिया जाता है। सामायिक में ये नाम लिये जाते हैं तथा गृहस्थ लोग हर समय

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पंचाश्चर्य

पंचाश्चर्य भक्तों के पुण्य से होता है क्योंकि वही मुनि जब दूसरे भक्त के यहाँ आहार लेते हैं तब पंचाश्चर्य नहीं होते । बरसे हुये

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संसार में व्यवहार

संसार में हम सब सज़ायाफ़्ता कैदी हैं । संसार से भागे तो जेलर सज़ा बढ़ा देगा । कर्म रूपी जेलर से व्यवहार बना के रखो,

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परीक्षा-प्रधान

आचार्य समन्तभद्र जी ने आत्म-मीमांसा ग्रंथ में ना तो मंगलाचरण किया ना ही भगवान को नमस्कार करके ग्रंथ का प्रारंभ किया । सीधे भगवान, आत्मा

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मंगल आशीष

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