Category: वचनामृत – अन्य
धर्म
अभाव में धर्म करना बड़ी बात नहीं, अभाव का एहसास न होना, धर्म की बात है । मुनि श्री प्रमाणसागर जी
मुक्ति
इस काल में तो मुक्ति नहीं, तो धर्म क्यों करें ? लाइन में तो लग लें ! पर लाइन में लग कर क्या करोगे, जब
संगति
लुहार सुबह अग्नि को पूजता है । बाद में उसी अग्नि को घन से पीटता है । कारण ? सुबह अग्नि एकाकी रहती है, बाद
धर्म / अधर्म
अधर्म = बदला लेना, धर्म = अपने आपको बदल लेना। आर्यिका श्री पूर्णमती माताजी
दृष्टि
दृष्टि पलटा दो, तामस समता हो और कुछ ना (तामस और समता, एक दूसरे को पलटाने से, यानि अंधकार में समता रखूं) आचार्य श्री विद्यासागर
भय
भय से आयु कम होती है, 1घंटा भय की अवस्था में रहने से कहते हैं 2½घंटा उम्र कम हो जाती है। अपराधियों की तथा चिड़ियों
संयम या संगति
या तो ख़ुद संयम/नियम ले लो, नहीं ले सकते तो संयमी की संगति कर लो। लक्ष्मण को क्रोध बहुत आता था, शांत राम की संगति
क्रिया / भाव
अच्छी/शुभ क्रियायें यदि बुरे भाव से भी की जायें तो भी फायदेमंद रहतीं हैं क्योंकि वे अच्छी हैं सो अच्छा ही करेंगी। दु:ख पड़ने पर
सरलता
कुछ सुनने पर बुरा ना लगना, ना ही किसी को बुरा कहना। 1. साधु के लिये – मन में होय सो वचन उचरिए, वचन होए
आधार / आधेय
आधार – घड़ा/सृष्टि/चैत्यालय आधेय – घी/ दृष्टि/ चैत्य आधार से ज्यादा आधेय महत्त्वपूर्ण होता है, उसे सम्भालना/सुधारना ज्यादा ज़रूरी। घर से एक साधु बना हो,
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