Category: पहला कदम
9 लब्धि
भोग तथा उपभोग लब्धियाँ पूर्णतया तीर्थंकरों को ही होती हैं। सामान्य केवलियों के भी पूरी 9 लब्धि होती हैं, पर अंतरंग। मुनि श्री प्रणम्य सागर
प्रातिहार्य / मंगल
प्रातिहार्य भगवान के लिए होते हैं। उनके अतिशय से भी होते हैं। ये सदा अरहंत भगवान/ मूर्ति के पास/ साथ रहते हैं। आठ मंगल* मूर्ति
बंधन
प्रायः संसारी जीव आश्रित रहना चाहता है, बंधन स्वीकारता है, कर्म बंध करता है। शांतिपथप्रदर्शक पर, विडम्बना यह है कि बंधन में आनंद लेने लगता
क्रियायें
प्रकार → 1. पाप क्रिया → सर्वथा हेय/ अशांति का कारण/ कर्म धारा रूप 2. पापानुबंधी-पुण्य क्रिया → मिश्र, मसाले जैसा पुण्य/ पाप, 3. पुण्यानुबंधी-पाप
एकेंद्रिय
एक इंद्रिय जीवों के लिये भी → वीर्यांतराय + मतिज्ञानावरण के क्षयोपशम + शरीर नामकर्म तथा जाति नामकर्म के उदय लगते हैं। सब में प्रवृत्तियाँ
गति / गत्यानुपूर्वी
जीव के वर्तमान को चलाता है गति नामकर्म। गत्यानुपूर्वी जीव को विग्रह गति में चलाता है। (लेकिन पर्याप्तक होने पर इसका उदय बंद हो जाता
गुणस्थान / लेश्या
गुणस्थान… मोह की न्यूनता / अधिकता होने से भावों में बदलाव। लेश्या… कषाय + योग प्रवृत्ति में न्यूनता/ अधिकता से आत्मा का लेपन। गुणस्थानों के
श्री षटखण्डागम
6 खंडों के नाम – जीवठान छुद्दाबंध बंध स्वामित्व विचय वेदना अनुयोग द्वार वर्गणाखंड महाबंध मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (शंका समाधान – 9)
इंद्रियाँ
द्रव्य-इंद्रियों की रचना मुख्यतः नामकर्म (अंगोपांग + शरीर नाम) के उदय से। भाव-इंद्रियों में ज्ञानावरणी कर्म के क्षयोपशम की मुख्य भूमिका। मतिज्ञानावरण + वीर्यांतराय कर्मों
संस्कार
संस्कार दो प्रकार के… 1. पूर्व जन्मों के 2. वर्तमान के पहचानें कैसे ? यदि अपराध, सहजता/ स्वेच्छा से तो पूर्व के संस्कार। परवश/ संगति
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