Category: पहला कदम
स्त्यानगृद्धि / बैर
स्त्यानगृद्धि में जीव नींद में उठकर हत्या तक कर आता है। यदि किसी के प्रति बैर है तो नींद में उसकी हत्या करने की संभावना
ज्ञान चेतना
कर्म, नोकर्म, भावकर्म से जुड़ा है जीव। जब तक पहली दो चेतनाओं(कर्मफल, कर्म चेतना) से ऊपर नहीं उठता तब तक ज्ञान चेतना का अनुभव नहीं।
तीर्थंकरों की अवगाहना
आदिनाथ भगवान की 500 धनुष से शुरू करके 50-50 धनुष कम करते-करते 100 धनुष 9वें भगवान की। 10 वें से 14वें तक 10-10 धनुष कम
मोहादि पर नियंत्रण
देवदर्शन/ पूजादि, सत्संग, गुरु वचन, ज्ञान के साथ धर्म करने से मोहादि पर नियंत्रण करना संभव है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (ति.भा.- गाथा 43)
धर्म / अधर्म
वस्तु का स्वभाव ही धर्म है वस्तु अनादि से है, सो धर्म भी अनादि से हुआ। लेकिन ये अधर्म कब और कहाँ से आ गया
वेग / संवेग
वेग की तीव्रता/ आक्रोश = आवेग काम करने की ज्यादा उत्सुकता = उत्सेग मद सहित उत्सेग = उद्वेग वेग रहित अवस्था = निर्वेग निर्वेगी (चिंता/
समाधि-मरण
शरीर छूटने पर व्रत छूट जाते हैं पर व्रती व्रत छोड़ता नहीं/ छोड़ना चाहता नहीं। इसे ही समाधि-मरण कहते हैं। वही संस्कार अगले भव में
गुरु आज्ञा
मुनि श्री प्रवचनसागर जी को गुरु आज्ञा मिली… अमुक मुनिराज की वैयावृत्ति करने की। रास्ते में पागल कुत्ते ने काट लिया। इंजेक्शन लगवाने की आचार्य
अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग
जो संवर का आदर तथा निर्जरा की इच्छा करता है, वह आत्मरसिक अभीक्ष्ण-ज्ञानोपयोग को जानता/ उसके निकट रहता है। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी (तिथ्य भा.–
शुद्धि
शुद्धि अनेक प्रकार की, सिर्फ़ भाव-शुद्धि से काम सिद्ध नहीं होगा। निमित्त, द्रव्य, कर्म, नोकर्म शुद्धि भी चाहिये। लेकिन ये सब शुद्ध हों और भाव-शुद्धि
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