Category: पहला कदम
असंयम
जैसे संयम-मार्गणा में “परस्परोपग्रहो जीवानाम्” होता है; वैसे ही असंयम-मार्गणा में “परस्परोपद्रवो जीवानाम्” होता है। उपद्रवों से बचने के लिए संयमी बनें। आवश्यकताएँ कम करें;
प्रथमानुयोग
जिन लोगों को करुणानुयोग/द्रव्यानुयोग में बहुत रुचि होती है, उनके लिये भी प्रथमानुयोग गाय दुहने से पहले, बछ्ड़े लगाने जैसा है। प्रथमानुयोग पढ़ने से दूध
निगोद से निकलना
निगोद से निकलने का निमित्त…. भावों में कलंक की कलुषता कम होना है क्योंकि कषायों में बिना पुरुषार्थ के हानि वृद्धि होती ही रहती है।
अनुभूति
आचार्य श्री विद्यासागर जी गर्भग्रह में गये। मुनि श्री सम्भवसागर जी…. कितनी ठंडक है ! आचार्य श्री…. वेदी के नीचे इतनी ठंडक है, वेदी के
मूलगुण
मूल यानि जड़, जिसके बिना पेड़, न जीवित रह सकता है, ना ही प्रगति कर सकता है। ऐसे ही श्रावक/ मुनि के लिये मूलगुण आवश्यक
कर्म-भार
कावड़िया(जीव), कावड़ी(शरीर) के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थानों(पर्यायों) में बोझा(कर्म-भार) ढोता रहता है। नये स्थान पर जा दूसरी कावड़ी बना, फिर नया बोझा
प्राण
तीनों बल (मन, वचन, काय) के लिये ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण दोनों का क्षयोपशम होना चाहिये क्योंकि ज्ञान बिना दर्शन के होगा नहीं। वीरांतराय कर्म के
शरीर नामकर्म
शरीर के योग्य परमाणुओं का संचय आयु (शरीर) के अनुसार होता है। औदारिक, वैक्रियिक व आहारक शरीरों में (गुण-हानि) हर अंतर्मुहूर्त के बाद द्रव्य आधा-आधा
सम्यग्दर्शन की पात्रता
तिर्यंचों को जन्म लेने के अंतर्मुहूर्त के बाद, मनुष्यों में 8 वर्ष के बाद। कारण ? तिर्यंच… सुनता-गुनता है, परन्तु बोलता नहीं। मनुष्य बोलता बहुत
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