Category: पहला कदम
णमोकार मंत्र पर श्रद्धा
णमोकार मंत्र पर श्रद्धा का अर्थ है…. अरहंत/सिद्ध अवस्थाओं पर श्रद्धा/ उनके अस्तित्व पर विश्वास/ अरहंत भगवान के (शास्त्र रूप) शब्दों पर श्रद्धा के साथ
मंदिर निर्माण
ऋषभदेव भगवान के आने से पहले इंद्र ने मंदिर निर्माण क्यों करवाया ? जबकि भगवान ने तो उसमें दर्शन/पूजा की नहीं ? क्योंकि ऊसर भूमि
विग्रह गति
विग्रह गति में सुख-दु:ख का वेदन नहीं होता क्योंकि उसमें नोकर्म नहीं रहता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
उत्तम चरम शरीर
1) उत्तम शरीर – चक्रवर्ती आदि (मोक्षगामी नहीं) 2) चरम शरीर – 3 पांडव (मोक्षगामी) 3) उत्तम चरम शरीर – तीर्थंकर। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मन
द्रव्य मन – आठ पंखुड़ी वाला, हृदय स्थल पर। भाव मन – ज्ञानात्मक, स्थान निश्चित नहीं, परिणाम निश्चित नहीं। मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
इन्द्रिय / मन
इन्द्रिय – आत्मा को इंद्र कहते हैं । आत्मा ज्ञान रूप है। 1. जो संसारी आत्मा को ज्ञान कराये, वह इंद्रिय । 2. जो जीवों
क्षयोपशम
विशुद्धि बढ़ने से क्षयोपशम बढ़ता है, संक्लेश भावों/ दु:खी रहने से क्षयोपशम घटता है । मुनि श्री प्रणम्यसागर जी
मोक्ष-मार्ग
मोक्ष-मार्ग, जटिल तो है किंतु, कुटिल नहीं । आचार्य श्री विद्यासागर जी
निज / पर
निज में रहे तो जिन बनोगे; “पर” में रहे तो, जिन्न । मुनि श्री महासागर जी
णमोकार
गैंद चारौ ओर से Perfect गोल होती है, ऊपर से/ नीचे से, उसके एक-एक Segment में भी Perfect गोलाई होती है।। णमोकार मंत्र भी ऐसा
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